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________________ आगम (०६) [भाग-१२] “ज्ञाताधर्मकथा" - अंगसूत्र-६ (मूलं+वृत्ति:) श्रुतस्कन्ध: [१] ----------------- अध्ययनं [९], ----------------- मलं [८२-८८] + गाथा: पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[०६] अंगसूत्र-[०६] "ज्ञाताधर्मकथा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [८२-८८ एयमद्वं नो आदति नो परि० णो अवयवखंति, अणाढायमाणा अपरि० अणवयक्षमाणा सेलएण जक्खेण सद्धिं लवणसमुदं मझमझेणं वीतिवयंति, तते णं सा रयणदीवदेवया ते मागंदिया जाहे नो संचाएति बहूहि पडिलोमेहि य वसग्गेहि य चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामित्तए या लोभित्तए वा ताहे महुरेहि सिंगारेहि य कलुणेहि य उवसग्गेहि य उवसग्गे पपत्ता यावि होत्या, हं भो मागंदियदारगा! जति णं तुन्भेहिं देवाणुप्पिया! मए सद्धिं हसियाणि य रमियाणि य ललियाणि य कीलियाणि य हिंडियाणि य मोहियाणि य ताहे णं तुम्भे सवाति अगणेमाणा ममं विप्पजहाय सेलएणं सद्धिं लवणसमुई मज्झमज्झेणं वीइवयह, तते णं सा रयणदीवदेवया जिणरक्खियरस मणं ओहिणा आभाएति आभोएसा एवं वदासी-णिचंऽपिय णं अहं जिणपालियस्स अणिहा ५ निचं मम जिणपालिए अणि? ५ निचंपिय णं अहं जिणरक्खियस्स इहा ५ निचंपिय णं ममं जिणरक्खिए इटे ५, जति णं ममं जिणपालिए रोयमाणी कंदमाणी सोयमाणी तिप्पमाणी विलवमाणी णावयखति किपणं तुमं जिणरक्खिया! ममं रोयमाणि जाव णावयक्खसि, तते गं-'सा पवररयणदीवस्स देवया ओहिणा उ जिणरक्खियरस मणं । नाऊण वधनिमित्तं उवरि मागंदियदारगाणं दोण्हपि ॥१॥ दोसकलिया सललियं णाणाविहचुण्णवासमीसं (सियं) दिछ । घाणमणनिव्वुइकर सबोउयसुरभिकुसुमधुढि पर्मुचमाणी ॥२॥णाणामणिकणगरयणघंटियखिंखिणिणेऊरमेहलभूसणरवेणं। दिसाओ विदि ecemeseiseneseneeeee गाथा: ASS दीप अनुक्रम [१२३-१४०] ~339~
SR No.035012
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 12 Gyatadharmkatha Mool evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages522
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size113 MB
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