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________________ आगम (०६) [भाग-१२] “ज्ञाताधर्मकथा" - अंगसूत्र-६ (मूलं+वृत्ति:) श्रुतस्कन्ध: [१] ----------------- अध्ययनं [८], ----------------- मूलं [७१,७२] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[०६] अंगसूत्र-[०६] "ज्ञाताधर्मकथा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: ज्ञाताधर्मकधाङ्गम. लड प्रत सूत्रांक [७१,७२] मझ्यध्ययेन श्रीदामगण्डात् ऋक्मिनु(पागमा सू.७१ ॥१४॥ दीप होत्था, सुकुमाल स्वेण य जोवणेणं लावण्णेण य उकिट्ठा उकिसरीरा जाया यावि होत्या, तीसे णं सुबाहुए दारियाए अन्नदा चाउम्मासियमजणए जाए यावि होस्था, तते णं से रुप्पी कुणालाहिवई सुबाहुए दारियाए चाउम्मासियमज्जणयं उवडियं जाणति २ कोटुंबियपुरिसे सदावेति २ एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया! सुबाहुए दारियाए कलं चाउम्मासियमजणए भविस्सति तं कल्लं तुम्भे गं रायमग्गमोगादसि चउर्फसि जलथलयदसद्धवन्नमल्लं साहरेह जाच सिरिदामगंडे ओलइन्ति, 'तते णं से रुप्पी कुणालाहिवती सुवनगारसेणिं सहावेति २एवं चयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! रायमग्गमोगादसि पुष्फमंडवंसि णाणाविह पंचवन्नेहिं तंदुलेहि णगरं आलिहह तस्स बहुमज्रदेसभाए पट्टयं रएह २ जाव पचप्पिणति, तते णं से रुप्पी कुणालाहिवई हत्धिखंधवरगए चाउरंगिणीए सेणाए महया भड० अंतेउरपरियाल संपरिषुडे सुबाहुंदारियं पुरतो कटु जेणेव रायमग्गे जेणेव पुष्फमण्डवे तेणेव उवागच्छति २ हत्थिखंधातो पचोरुहति २ पुप्फमंडवं अणुपविसति २ सीहासणवरगए पुरस्थाभिमुहे सन्निसन्ने, तते णं ताओ अंतेउरियाओ सुबाहुं दारियं पट्टयंसि दुरूहेंति २ सेयपीतएहिं कलसेहि पहाणेति २ सवालंकारविभूसियं करेंति २ पिउणो पार्य वंदि उवणेति,तते णं सुबाहुदारिया जेणेव रुप्पी राया तेणेव उवागच्छति २ पायग्गहणं करेति, तते णं से रूप्पी राया सुधाई दारियं अंके निवेसेति २ सुवाहुए दारियाए स्वेण य जो लाव० जाब विम्हिए वरिसधरं सद्दावेति २ एवं वयासी-तुमण्णं अनुक्रम [८९,९० कलese ॥१४॥ FarPranaswamincom रुक्मी-नृपः, तस्य वर्णनं ~290
SR No.035012
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 12 Gyatadharmkatha Mool evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages522
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size113 MB
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