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________________ आगम (०६) [भाग-१२] “ज्ञाताधर्मकथा” – अंगसूत्र-६ (मूलं+वृत्ति:) श्रुतस्कन्ध: [१] ----------------- अध्ययनं [१], ----------------- मूलं [३०,३१] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[०६] अंगसूत्र-[०६] "ज्ञाताधर्मकथा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: ज्ञाताधर्म-18 कथाङ्गम् प्रत सूत्रांक [३०,३१] ॥ ७५|| १उत्क्षिप्त| ज्ञाते मेघकुमारस्थानशनं गतिश्च सू. ३०-३१ दीप रस्स अगिलाए वेयावडियं करेंति । तते णं से मेहे अणगारे समणस्स भगवओ महावीरस्स तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिन्जित्ता बहुपडिपुन्नाई दुवालस वरिसाई सामन्नपरियागं पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झोसेत्ता सहि भत्ताई अणसणाए छेदेता आलोतियपडिकते उद्धियसल्ले समाहिपत्ते आणुपुषेणं कालगए, तते ण ते घेरा भगवंतो मेहं अणगारं आणुपुवेणं कालगयं पासेंति २ परिनिवाणवत्तियं काउस्सर्ग करेंति २ मेहस्स आयारभंडयं गेण्हंति २ विउलाओ पचयाओ सणियं २ पच्चोरहंति २जेणामेव गुणसिलए चेइए जेणामेव समणे भगवं महावीरे तेणामेव उबागच्छति २त्ता समणं ३ वदति नमसंति २त्ता एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेबासी मेहे णामं अणगारे पगहभद्दए जाब विणीते से णं देवाणुप्पिएहिं अन्भणुनाए समाणे गोतमातिए समणे निग्गंधे निग्गंधीओ य खामेसा अम्हहिं सद्धि विउल पवयं सणियं २ दुरूहति २ सयमेव मेघघणसन्निगासं पुढविसिलं पट्टयं पडिलेहेति २ भत्तपाणपडियाइक्खित्ते अणुपुवेणं कालगए, एसणं देवाशुप्पिया मेहस्स अणगारस्स आयारभंडए।(सूत्रं ३०) भंतेत्ति भगवं गोतमे समणं उ वंदति नमसति २ सा एवं वदासी-एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी मेहे णाम अणगारे से णं भंते ! मेहे अणगारे कालमासे कालं किच्चा कहिं गए कहिं उववन्ने ?. गोतमादि समणे भगवं महावीरे भगर्व गोयम एवं बयासीएवं खलु गोयमा ! मम अंतेवासी मेहे णामं अणगारे पगतिभद्दए जाच विणीए से गं तहारूवाणं अनुक्रम [४०,४१] ReceACROS ॥ ७५॥ मेघकुमारस्य तपोमय-संयम-जीवनं ~160
SR No.035012
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 12 Gyatadharmkatha Mool evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages522
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size113 MB
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