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________________ आगम (०५) [भाग-१०] "भगवती"-अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [१२], वर्ग [-], अंतर-शतक [-], उद्देशक [५], मूलं [४४९-४५०] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५] अंगसूत्र- [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [४४९ -४५०] पणिया जहा नेर, धम्मत्धिकाए जाव पोग्गल० एए सधे अवन्ना, नवरं पोग्गल पंचवन्ने पंचरसे दुगंधे अह ॥ फासे पण्णते, णाणावरणिज्जे जाव अंतराइए एयाणि चउफासाणि, कण्हलेसा णं भंते ! कइवन्ना० १ पुच्छा मादबलेसं पहुंच पंचवन्ना जाच अट्ठफासा पण्णत्ता, भावलेसं पडुच अवन्ना ४, एवं जाच सुकलेस्सा, सम्म-|| | हिहि ३ चक्खुईसणे ४ आभिणियोहियणाणे जाव विम्भंगणाणे आहारसन्ना जाव परिग्गहसन्ना एयाणि अवन्नाणि ४, ओरालियसरीरे जाव तेयगसरीरे एयाणि अट्ठफासाणि कम्मगसरीरे चउफासे, मणजोगे वयजोगेय चउफासे, कायजोगे अहफासे, सागारोवओगे य अणागारोवओगे य अवन्ना । सबदबा णं भंते! कतिवना ? पुच्छा, गोयमा । अत्थेगतिया सबदबा पंचवन्ना जाव अट्ठफासा पण्णत्ता अत्थेगतिया सबदवा पंचवन्ना चउफासा पण्णत्ता अत्धेगतिया सबछा एगगंधा एगवण्णा एगरसा दुफासा पन्नत्ता अत्थेगइया सब दवा अवना जाव अफासा पन्नता, एवं सबपएसावि सबपजवावि, तीयद्धा अवन्ना जाव अफासा पण्णत्ता, ५ एवं अणागयद्धावि, एवं सबद्धावि ॥ (सूत्रं ४५०) 'रायगिहे'इत्यादि 'पाणाइवाए'त्ति प्राणातिपातजनितं तजनक वा चारित्रमोहनीयं कर्मोपचारात् प्राणातिपात एच, एवमुत्तरवापि, तस्य च पुद्गलरूपत्वाद्वर्णादयो भवन्तीत्यत उक्तं 'पंचवन्ने' इत्यादि, आह च-"पंचरसपंचवन्नेहि परिणयं| दुविहगंधचउफासं । दवियमणतपएस सिद्धेहिं अणतगुण हीणं ॥१॥" इति [पञ्चभी रसैः पञ्चभिर्वणः परिणतं द्विविधगन्धं चतुःस्पर्शम् । अनन्तप्रदेशं द्रव्यं सिद्धेभ्योऽनन्तगुणं हीनम् ॥१॥] 'चउफासे'त्ति स्निग्धरूक्षशीतोष्णा *--%A4%95%e0% दीप अनुक्रम [५४२-५४३] ~53
SR No.035010
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 10 Bhagavati Mool evam Vrutti Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size111 MB
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