________________
आगम
(०५)
प्रत
सूत्रांक
[४४९
-४५०]
दीप
अनुक्रम
[५४२
-५४३]
[भाग-१०] “भगवती”- अंगसूत्र -५ ( मूलं + वृत्ति:)
शतक [१२], वर्ग [−], अंतर् शतक [ - ], उद्देशक [५], मूलं [४४९-४५०]
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र - [०५] अंगसूत्र- [ ०५] "भगवती” मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्तिः
व्याख्या
प्रज्ञप्तिः अभयदेवी
या वृत्ति:२
॥ ५७१॥
धारणा एस णं कतिवन्ना १, एवं चैव जाव अफासा पन्नता । अह भंते ! उट्ठाणे कम्मे यले वीरिए पुरि| सकारपरकमे एस णं कतिवन्ने ? तं चैव जाव अफासे पन्नते । सत्तमे णं भंते ! उवासंतरे कतिबन्ने ? | एवं चैव जाव अफासे पनन्ते । सप्तमे णं भंते । तणुवाए कतिवन्ने ?, जहा पाणाश्वाए, नवरं अट्ठफासे पण्णसे, एवं जहा ससमे तणुवाए तहा सत्तमे घणवाए घणोदधि पुढवी, छट्टे उधासंतरे अबन्ने, तणुवाए जाव छट्टी | पुढची एयाई अट्ट फासाई, एवं जहा सत्तमाए पुढवीए वत्तवया भणिया तहा जाब पढमाए पुढवीए भाणियां, | जंबुद्दीवे २ सयंभुरमणे समुद्दे सोहम्मे कप्पे जाव ईसिपम्भारा पुढची नेरतियावासा जाव वैमाणियावासा | एयाणि सङ्घाणि अट्ठफासाणि । मेरइया णं भंते! कतिवन्ना जाव कतिफासा पन्नता ? गोयमा ! वेडवियतेयाई | पहुच पंचवन्ना पंचरसा दुग्गंधा अट्ठफासा पण्णत्ता, कम्मगं पडुञ्च्च पंचवन्ना पंचरसा दुगंधा चडफासा पण्णत्ता, जीवं पहुच अवन्ना जाव अफासा पण्णत्ता, एवं जाव धणिय०, पुढविकाइयपुच्छा, गोयमा ! ओरालियतेयगाई पहुंच पंचवन्ना जाव अट्ठफासा पण्णत्ता, कम्मगं पहुच जहा नेर०, जीवं पडुच्च तहेव, एवं जाव + चउरिंदि०, नवरं वाउकाइया ओरा० बेड० तेयगाई पहुंच पंचवन्ना जाव अट्ठफासा पण्णत्ता, सेसं जहा नेरइयाणं, पंचिंदियतिरिक्खजोगिया जहा वाडकाइया, मणुस्साणं पुच्छा ओरालियवेउब्वियआहारगतेयगाई पडच पंचवन्ना जाव अट्टफासा पण्णत्ता, कम्मगं जीवं च पहुच जहा नेर०, वाणमंतरजोइसियवेमा
Education Internation
For Pernal Use On
१२ शतके
५ उद्देशः पापस्थान वर्णादिः वि 4 रमण प्रभू||ति वर्णादिः सू ४४९
४५०
~ 52~
॥५७१॥
waryru