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आगम (०५)
[भाग-१०] "भगवती"-अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:)
शतक [१८], वर्ग -1, अंतर्-शतक [-], उद्देशक [७], मूलं [६३४-६३८] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५] अंगसूत्र- [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [६३४-६३८]
दीप
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एयमह पडिसुणेति अन्नमन्नस्स २सा जेणेव महुए समणोवासए तेणेव उवा०२महुयं समणोवासयं एवं वदा|सी-एवं खलु महुया! तव धम्मापरिए धम्मोवदेसए समणे णायपुत्से पंच अस्थिकाये पन्नवेइ जहा सत्तमे || || |सए अन्नउस्थिउद्देसए जाव कहमेयं महुया! एवं ?, तए णं से महुए समणोवासए ते अन्नउस्थिए एवं
वयासी-जति कजं कजति जाणामो पासामो अहे कज्ज न कजति न जाणामो न पासामो, तए गं ते अन्नउ-2 का स्थिया महुयं समणोवासयं एवं वयासी-केस णं तुम मया ! समणोषासगाणं भवसि जे णं तुम एपमहूँ || |
न जाणसिन पाससि ?, तए णं से महुए समणोवासए ते अन्नउस्थिए एवं वयासी-अस्थि णं आउसो वाउयाए वाति ,हंता अस्थि, तुज्झे णं आउसो! वाउयायस्स वायमाणस्स रूवं पासह, णो तिणटे समढे, | अस्थि णं आउसो! घाणसहगया पोग्गला ?, हंता अस्थि, तुज्झे णं आउसो! घाणसहगयाणं पोग्गलाणं रूवं पासह, णो तिण२०, अस्थि णं भंते ! आउसो! अरणिसहगये अगणिकाये?, हंता अस्थि, तुज्झे णं आउसो ! अरणिसहगयरस अगणिकायस्स रूवं पासह ?, णो ति०, अस्थि णं आउसो! समुदस्स पारग-|| याई रुवाई, हंता अस्थि, तुझे णं आउसो समुहस्स पारगयाई रुवाई पासह ?, णो ति०, अस्थि गं|४ आउसो! देवलोगगयाई रुवाई?, हंता अस्थि, तुज्झे णं आउसो ! देवलोगगयाई रुवाई पासह ,णो ति०, एवामेव आउसो! अहं वा तुज्झे वा अन्नो वा छउमत्थो जइ जो जन जाणइ न पासइ तं सबं न भवति । एवं ते सुवहुए लोए ण भविस्सतीतिकट्ट ते णं अन्नउत्थिए एवं पडिहणइ एवं प०२ जेणेव गुणसि० चेइए
अनुक्रम [७४४-७४८]
मद्रुक-श्रावकस्य वृतांत
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