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आगम (०५)
[भाग-१०] "भगवती"-अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:)
शतक [१८], वर्ग [-], अंतर-शतक [-], उद्देशक [५], मूलं [६२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५, अंगसूत्र- [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [६२७]
प. तत्थ णं जे से मायिमिछादिहिउववन्मए नेरइए से महाकम्मतराए चेव जाच महावेयणतराए चेव, सातत्यजेसे अमायिसम्मदिहिउववन्नए नेरइए से णं अप्पकम्मतराए चेव जाव अप्पवेयणतराए व.।
कोभले असुरकुमारा चेक एवं एबिदिवमिलिरिषवळ जाव वेगाणिया (सूत्र १२७)॥ || बोलेनेहए' त्यादि, 'महाकम्मतराए कत्तिइह यावत्करणात् 'महाकिरियतराए के महासवतराए 'त्ति
दृश्य, व्याख्या पास्य प्राग्वत् । 'गिदियकिमलिदियबजति इहैकेन्द्रियादिवर्जनमेतेषां मायिमिथ्यादृष्टित्वेनामाशायिसम्यग्दृष्टिविशेषणस्यायुज्यमानत्यादिति ॥ प्राग् नारकादिवतव्यतोक्का ते चायुष्कमतिसंवेदनावन्त इति तेषां तां| ४ निरूपयन्नाह
| नेहए ण भंते ! अणंतरं अवहिता जे. भविए पंचिंदियतिरिक्वजोणिएसु उचव जित्तए से भंते ! कयर *आउयं पडिसंवेदेति ?, गोयमा ! नेरइयाजयं पडिसंवेदेति पंचिंदियतिरिक्खजोणियाउए से परओ कडे|| चिट्ठति, एवं मणुस्सेसुवि, नवरं मणुस्साए से पुरओ कडे चिट्ठइ । असुरकुमारा णं भंते ! अणंतरं उच्चट्टित्ता जे भविए पुढविकाइएसु उबवजित्तए पुच्छा, गो! असुरकुमाराउयं पडिसंवेदेति पुढविकाइयाउए से पुरओ
कडे चिट्ठइ, एवं जो जहि भविओ उपजिसए तस्स तं पुरओ कडं चिट्ठति, जत्थ ठिओतं पडिसंवेदेति जाव 1वेमाणिए, नवरं पुढचिकाइए पुढक्किाइएसु उवयजति पुढविकाइयाउयं पडिसंवेएलि अन्ने य से पुढविकाइयाउए
पुरओ को चिट्ठति पर्व वाकमणुरको सट्टाणे उबवापको परवाणे तहेव ॥ (सत्रं ५२८) दो भंते ! असुरकुमार
दीप अनुक्रम [७३७]
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