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आगम (०५)
[भाग-१०] "भगवती"-अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:)
शतक [१८], वर्ग -1, अंतर-शतक [-], उद्देशक [५], मूलं [६२६] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५] अंगसूत्र- [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [६२६]
यसरीराय, तत्थ पंजे से वेवियसरीरे असुरकुमारे देवे से गं पासादीए जाय पडिरूवे. तस्थ गंजे से १८ शतके प्रज्ञप्तिः अवेउवियसरीरे अमुरकुमारे देवे से ण नो पासादीए जाव नो पडिरूवे, से केण्टेणं भंते ! एवं वुच्चइ तत्थ उद्देशः ५ अभयदेवी- जे से वेउब्वियसरीरे तं चेक जावपडिरूवे ?, गोयमा! से जहानामए-इहं मणुयलोगंसि दुवे पुरिसा भवंति-1 असुरादिप्रा यावृत्तिा पमे पुरिसे अलंबिपविभूसिए एगे पुरिसे अणलंकियविभूसिए, एएसि णं गोयमा ! दोहं पुरिसाणं कयरे सादीयतेर
|| पुरिसे पासादीए जाव पकिसके कयरे पुरिसे नो पासादीए जाव नो पडिरूवे जे वा से परिसे अलंकिप- तसू५२६ ॥७४६॥
|विभूसिए जे वा से पुरिसे अणलंकियविभूसिए, भगवं ! तत्थ जे से पुरिसे अलंकियविभूसिए से णं पुरिसे || |पासादीप जाव पहिरूबे, तस्थ णं जे से पुरिसे अणलंकियविभूसिए से गं पुरिसे नो पासादीए जाव नो पडिरूवे से तेणद्वेणं जाब नो पडिरूवे । दो भंते ! नागकुमारादेवा एगंसि नागकुमारावासंसि एवं चेव एवं जायजयकुमारा वाणमंतरजोतिसिया वेमाणिया एवं चेव ॥ (सूत्रं ६२६)॥
'दो भंते इत्यादि 'वेउवियसरीरक्ति विभूषितशरीराः॥ अनन्तरमसुरकुमारादीनां विशेष उक्तः, अथ विशेषाधिकारादिदमाह|| दो भंते नेरसिया एसि रतियावामंसि नेरलियसाए उववक्षा, तत्व णं एगे नेरहए महाकम्भतराएर | चेव जाव महादेयणतराए बेब एगे रहए अप्पकम्मतराए चेय जाव अप्पवेषणतराए चेव से कहमेयं ॥७४६॥ भंते । एवं, गोयमा बेरहया दुबिहा प००-मापिमिळाविछिउववसाय अमाविसम्मदिविउवयनमा
दीप अनुक्रम [७३६]
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