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________________ आगम (०५) [भाग-१०] "भगवती"-अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [१७], वर्ग [-], अंतर-शतक [-], उद्देशक [२], मूलं [५९६-५९७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५, अंगसूत्र- [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [५९६-५९७] द अन्ने जीवे अन्ने जीवाया, उप्पत्तियाए उग्गहे ईहा अवाए धारणाए बट्टमाणस्स जाव जीवाया, उट्ठाणे जाव पर कमे चट्टमाणस्स जाव जीचाया, नेरइयत्ते तिरिक्खमणुस्सदेवत्ते वट्टमाणस्स जावजीवाया, नाणावरणिजे जाव अंतराइए वद्दमाणस्स जाव जीवाया, एवं कण्हलेस्साए जाव सुकलेस्साए सम्मदिट्ठीए ३ एवं चक्खुदसणे ४ | आमिणिबोहियनाणे ५ मतिअन्नाणे ३ आहारसन्नाए ४ एवं ओरालियसरीरे ५ एवं मणजोए ३ सागारोव| ओगे अणागारोवओगे बट्टमाणस्स अण्णे जीवे अन्ने जीवाया, से कहमेयं भंते ! एवं ?, गोयमा ! जपणं ते | अन्नउस्थिया एवमाइक्खंति जाव मिच्छं ते एवमासु, अहं पुण गोयमा ! एवमाइक्खामि जाव परूवेमिएवं खलु पाणातिवाए जाव मिच्छादसणसल्ले वट्टमाणस्स सच्चेव जीवे सच्चेव जीवाया जाव अणागारोवओगे वहमाणस्स सचेव जीवे सच्चेव जीचाया (सूत्रं५९६)॥ देवे णं भंते!महवीए जाव महेस. पुवामेव रूवी भवित्ता पभू अरूविं विउवित्ताणं चिहित्तए १, णो तिण? समढे, से केणट्टेणं भंते ! एवं चुचद देवे णं जाव नो पभू अरूविं विउवित्ताणं चिट्ठित्तए ?, गोयमा ! अहमेयं जाणामि अहमेयं पासामि अहमेयं बुज्झामि अहमेयं | अभिसमन्नागच्छामि, मए एयं नायं मए एयं दिढ मए एवं बुद्धं मए एवं अभिसमन्नागयं जपणं तहागयस्स जीवस्स सरूविस्स सकम्मस्स सरागरस सवेदणस्स समोहस्स सलेसस्स ससरीरस्स ताओ सरीराओ अविप्पमुक्कस्स एवं पन्नायति, तंजहा-कालते वा जाव सुकिल्लत्ते वा सुन्भिगंधत्ते वा दुभिगंधत्ते वा तित्ते वा जाव महुर० कक्खडते जाव लुक्खत्ते, से तेण?णं गोयमा ! जाच चिट्टित्तए॥ सन्चेव णं भंते ! से जीवे दीप अनुक्रम [७०१-७०२] ~356
SR No.035010
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 10 Bhagavati Mool evam Vrutti Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size111 MB
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