________________
आगम (०५)
[भाग-१०] "भगवती"-अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:)
शतक [१७], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [२], मूलं [५९४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५] अंगसूत्र- [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [५९४]
****
हा धम्मेवि ठिता अधम्मेवि ठिता धम्माधम्मेवि ठिता, नेरह० पु०१, गोयमा ! णेरड्या णो धम्मे ठिता अधम्मे ठिता णो धम्माधम्मे ठिता, एवं जाव चारिदियाणं, पंचिंदियतिरिक्खजो पुच्छा, गोयमा ! पंचिंदियति-IN रिक्ख जोणिनो धम्मे ठिया अधम्मे ठिया धम्माधम्मेवि ठिया, मणुस्सा जहा जीवा, बाणमंतरजोइ० वेमाणि जहा नेर० (सूत्रं ५९४)॥ __'से नूणं भंते !'इत्यादि, धम्मेत्ति संयमे 'चक्किया केइ आसइत्तए वत्ति धर्मादौ शक्नुयात् कश्चिदासयितुं ! नायमर्थः समर्थो, धर्मादेरमूर्तत्वात् मूर्ते एव चासनादिकरणस्य शक्यत्वादिति ॥ अथ धर्मस्थितत्वादिकं दण्डके निरूप-11 यन्नाह-'जीवा ण'मित्यादि व्यक्तं, संयतादयः प्रागुपदर्शितास्ते च पण्डितादयो व्यपदिश्यन्ते, अत्र चार्थेऽन्ययूधिकम
RECTONESCRISIS
*
**
तमुपदर्शयन्नाह
दीप अनुक्रम [६९९]
*
अन्नउत्थिया भंते ! एवमाइक्खंति जाव परूवेंति-एवं खलु समणा पंडिया समणोवासया बालपंडिया जस्स णं एगपाणाएवि दंडे अणिक्खित्ते से णं एगतयालेत्ति बत्तवं सिया, से कहमेयं भंते । एवं?, गोयमा! जपणं ते अन्नउत्थिया एवमाइक्खंति जाव वत्तवं सिया, जे ते एवमाहंसु मिच्छं ते एवमा०, अहं पुण गोय
मा! एवमाइक्खामि जाव परवेमि एवं खलु समणा पंडिया समणोबासगा बालपंडिया जस्स णं एगपा-15 ४ णाएवि दंडे निक्खित्ते से णं नो एगंतबालेति वत्तवं सिया ॥ जीवा णं भंते ! किंबाला पंडिया बालप-16 डिया?, गोयमा!जीवा वालावि पंडियावि बालपंडियावि, नेरइयाणं पुच्छा, गोयमानेरड्या बाला नोपंडिया
*
*
**
~354