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________________ आगम (०५) [भाग-१०] "भगवती"-अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [१६], वर्ग [-], अंतर-शतक [-], उद्देशक [१], मूलं [५६४-५६५] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५, अंगसूत्र- [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [५६४-५६५] जीवे णं भंते । किं अधिकरणी अधिकरणं ?, गोयमा!जीवे अधिकरणीवि अधिकरणपि, सेकेणद्वेणं भंते ! एवं बुचइ जीवे अधिकरणीवि अधिकरणपि ?, गोयमा ! अविरतिं पडुच से तेणढणं जाव अहिकरणंपि॥15 नेरइए णं भंते । किं अधिकरणी अधिकरणं?, गोयमा ! अधिकरणीवि अधिकरणंपि एवं जहेव जीवे तहेव नेरइएवि, एवं निरंतरं जाव वेमाणिए । जीवे णं भंते ! किं साहिकरणी निरहिकरणी, गोयमा ! साहिक18||रणी नो निरहिकरणी, से केणडेणं पुच्छा, गोयमा! अविरतिं पडुच, से तेणडेणं जाव नो निरहिकरणी एवं 18 | जाव वेमाणिए । जीवे णं भंते ! किं आयाहिकरणी पराहिकरणी तदुभयाहिकरणी, गोयमा ! आयाहिकरणीवि पराहिकरणीवि तभयाहिकरणीवि, से केण?णं भंते ! एवं वुचइ जाव तदुभयाहिकरणीवि, गोयमा!* अविरतिं पडुच्च, से तेणटेणं जाव तदुभयाहिकरणीवि, एवं जाव वेमाणिए ॥ जीवाणं भंते ! अधिकरणे किं आयप्पओगनिवत्तिए परप्पयोगनिवत्तिए तदुभयप्पयोगनिवत्तिए १, गोयमा! आयप्पयोगनिवत्तिएवि परप्पयोगनिवत्तिएवि तदुभयप्पयोगनियत्तिएवि, से केणटेणं भंते !एवं बुच्चइ ?, गोयमा अविरतिं पडुच, से तेणटेणं है जाव तदुभयप्पयोगनिवत्तिएवि, एवं जाव वेमाणियाणं (सूत्रं५६४)॥ कइणं भंते ! सरीरगा पण्णत्ता?,गोयमा ! |पंच सरीरा पण्णत्ता, तंजहा-ओरालिए जाव कम्मए कति णं भंते ! इंदिया पण्णता ?, गोयमा ! पंच इंदि या पण्णत्ता, तंजहा-सोईदिए जाव फासिदिए, कतिविहे णं भंते । जोए पण्णते ?, गोयमा! तिविहे जोए| |पण्णत्ते, तंजहा-मणजोए वहजोए कायजोए ॥ जीवे णं भंते ! ओरालियसरीरं निवत्तेमाणे किं अधिकरणी दीप अनुक्रम [६६४-६६५] ~304
SR No.035010
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 10 Bhagavati Mool evam Vrutti Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size111 MB
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