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________________ आगम (०५) [भाग-१०] "भगवती"-अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [१६], वर्ग [-], अंतर-शतक [-], उद्देशक [१], मूलं [५६३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५, अंगसूत्र- [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [५६३] दीप अनुक्रम [६६३] व्याख्या- च णं से पुरिसे कातियाए जाव पाणाइवायकिरियाए पंचहि किरियाहिं पुढे, जेसिपिय णं जीवाणं सरीरेहितो १६ शतके प्रज्ञाप्तः अए नियत्तिए अयकोट्टे निवत्तिए संडासए निवत्तिए इंगाला निबत्तिया इंगालकहिणि निपत्तिया भत्था निव- उद्दशा अभयदेवी त्तिया तेवि णं जीवा काइयाए जाव पंचहि किरियाहिं पुट्ठा । पुरिसे णं भंते ! अयं अयकोहाओ अयोमएणं या वृत्तिः२ |संडासएणं गहाय अहिकरणिसि उक्खित्रमाणे वा निक्खित्वमाणे वा कतिकिरिए ?, गोयमा ! जावं च णं से णि क्रियाः सू ५६३ ॥६९७॥ पुरिसे अयं अयकोट्ठाओ जाच निक्खिवइ वातावं च णं से पुरिसे काइयाए जाच पाणाइवायकिरियाए पंचहिं किरियाहिं पुढे, जेसिपि णं जीवाणं सरीरेहितो अयो निबत्तिए संडासए निबत्तिए चम्मेढे निवत्तिए मुट्टिए निवत्तिए अधिकरणि अधिकरणिखोडी णि उदगदोणी णि अधिकरणसाला निवत्तिया तेवि णं जीचा काइयाए जाव पंचहि किरियाहिं पुट्ठा (सूत्रं ५६३)॥ मा 'पुरिसे णं भंते इत्यादि, 'अर्य'ति लोहम् 'अयकोट्ठसित्ति लोहप्रतापनार्थे कुशूले 'उधिहमाणे वत्ति उत्क्षिपन || वा 'पबिहमाणे 'त्ति प्रक्षिपन् वा 'इंगालकहिणित्ति ईपद्वकामा लोहमययष्टिः 'भत्यत्ति ध्मानखाला, इह चायःप्रभः। तिपदार्थनिवर्तकजीवानां पञ्चक्रियत्वमविरतिभावेनावसेयमिति । 'चम्मेद्वेत्ति लोहमयः प्रतलायतो लोहादिकुट्टनप्रयोजनो लोहकाराथुपकरणविशेषः, 'मुट्टिए'त्ति लघुतरो घनः 'अहिगरणिखोडित्ति यत्र काठेऽधिकरणी निवेश्यते 'उदगदो-|| ॥६९७॥ |णि'त्ति जलभाजनं यत्र तप्तं लोहं शीतलीकरणाय क्षिप्यते 'अहिगरणसाल'त्ति लोहपरिकर्मगृहम् ॥ प्राक्रियाः प्ररूपिताभास्तासु चाधिकरणिकी, सा चाधिकरणिनोऽधिकरणे सति भवतीत्यतस्तयनिरूपणायाह HORA ~303
SR No.035010
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 10 Bhagavati Mool evam Vrutti Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size111 MB
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