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________________ आगम (०५) [भाग-१०] "भगवती"-अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [१४], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [१०], मूलं [५३८] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५] अंगसूत्र- [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: E % प्रत सूत्रांक [५३८] व्याख्या-18 केवली णं भासेज था वागरेज वा णो तहाणं सिद्धे भासेज था बागरेज वा १, गोयमा! केवली १४ शतके प्रज्ञप्तिःणं सउट्ठाणे सकम्मे सबले सवीरिए सपुरिसकारपरकमे, सिद्धे णं अणुहाणे जाव अपुरिसकारपरकमे, से १० उद्देशः यदेवी- तेणढणं जाव वागरेज वा, केवली गं भंते ! उम्मिसेज वा निमिसेज वा ?, हंता उम्मिसेज वा निम्मिसेज || केवलिसिया वृत्तिः२|| त्तिःचा एवं चेच, एवं आउद्देज वा पसारेज वा, एवं ठाणं वा सेज वा निसीहियं चा चेएज्जा, केवली णं भंते ! इम द्धानां ज्ञान रयणप्पभं पुढर्षि रयणप्पभापुढवीति जाणति पासति?, हंता जाणइ पासइ, जहा णं भंते ! केवली इमं रय-|| सायं ॥६५७|||रयणपुलावरचणमानात भणप्पभं पुढर्षि रयणप्पभापुढवीति जाणइ पासइ तहा णं सिद्धेवि इमं रयणप्पभं पुर्वि रयणप्पभपुढवीति | जाणइ पासह, हंता जाणइ पासइ, केवलीण भंते! सकरप्पभं पुढविं सकरपभापुढवीति जाणइ पासइ ?, एवं चेव एवं जाव अहेसत्तमा, केवली णं भंते ! सोहम्मं कप्पं जाणइ पासइ, हंता जाणइ पासइ, एवं चेव, एवंद्र ईसाणं एवं जाव अचुयं, केवलीणं भंते ! गेवेजविमाणे गेवेजविमाणेत्ति जाणइ पासइ ?, एवं चेव, एवं अणु सरविमाणेवि, केवली णं भंते ! ईसिपन्भारं पुढविं ईसीपन्भारपुढवीति जाणइ पासइ, एवं चेव, केवली णं भिंते! परमाणुपोग्गलं परमाणुपोग्गलेत्ति जाणइ पासइ, एवं चेव, एवं दुपएसियं खंधं एवं जाव जहा णं मंते ! केवली अर्थतपएसियं खंधं अर्णतपएसिए खंधेत्ति जाणइ पासइ तहा णं सिद्धेवि अणंतपएसियं जाव ॥६५७॥ पासह, हंता जाणइ पासह । सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति (सूत्रं ५३८)॥१४-१०॥ चोइसमं सयं समत्तं ॥१४॥ दीप अनुक्रम [६३६] RSS ~224
SR No.035010
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 10 Bhagavati Mool evam Vrutti Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size111 MB
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