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________________ आगम (०५) [भाग-१०] "भगवती"-अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [१४], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-1, उद्देशक [८], मूलं [५२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५] अंगसूत्र- [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: प्रत सूत्रांक ॥६५॥ सूत्रत्रयमाह [५२७] व्याख्या इति, उक्तव-"ईसीपम्भाराए उवरिं खलु जोयणस्स जो कोसो । कोसस्स य छम्भाए सिद्धाणोगाहणा भणिया ॥१॥"||१४ शतके प्रज्ञप्तिः |8| इति । [ ईपत्पाग्भाराया उपरि योजनस्य यः क्रोशः खलु क्रोशस्य च पष्ठो भागः एषा सिद्धानामवगाहना भणिता॥१॥] उद्देश: अभयदेवी- देसूर्ण जोयणति इह सियलोकयोर्देशोनं योजनमन्तरमुक्तं आवश्यके तु योजनमेव, तत्र च किश्चिन्यूनताया अविव- शालतोष्ट या वृत्तिः२ | क्षणान्न विरोधो मन्तव्य इति ॥ अनन्तरं पृथिव्याधन्तरमुक्तं तच जीवानां गम्यमिति जीवविशेषगतिमाश्रित्येदं । सपनामेकावता रतासू५२८ टी एस गंभंते ! सालरुक्खे उपहाभिहए तण्हाभिहए दवग्गिजालाभिहए कालमासे कालं किवा कहिंदू गच्छिहिति कहिं उववजिहिति ?, गोयमा ! इहेव रायगिहे नगरे सालरुक्खत्ताए पचायाहिति, से णं तत्थल ४ अचियर्वदियपूइयसकारियसम्माणिए दिवे संचे सच्चोबाए सन्निहियपाडिहेरे लाउल्लोइयमहिए यावि भविदस्सइ, से णं भंते ! तओहिंतो अणंतरं उचट्टित्ता कहिं गमिहिति कहिं उववजिहिति, गोषमा ! महाविदेहे वासे सिसिहिति जाव अंतं काहिति ॥एस भंते साललट्टिया उपहाभिहया तण्णामिहया दवग्गिजालाभिया : कालमासे कालं किच्चा जाव कहिं उववजिहिति ?, गोयमा! इहेव जंबूद्दीवे २ भारहे वासे विज्झगिरिपायमूले दिमहेसरिए मगरीए सामलिरुक्खत्ताए पचायाहिति,सा णं तस्थ अच्चियवंदियपूइय जाव लाउलोइयमहिए यावि|४६५२॥ भविस्सह, से णं भंते ! तओहिंतो अणंतरं उपट्टित्ता सेसं जहा सालरुवखस्स जाच अंतं काहिति । एस णं | भंते ! उंबरलट्टिया उण्डाभिहया ३ कालमासे कालं किचा जाव कहिं उववजिहिति ?, गोयमा! इहेव जंबु दीप अनुक्रम [६२४] ~2144
SR No.035010
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 10 Bhagavati Mool evam Vrutti Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size111 MB
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