SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम (०५) [भाग-१०] "भगवती"-अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [१२], वर्ग [-], अंतर-शतक [-], उद्देशक [१], मूलं [४४०] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५] अंगसूत्र- [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [४४०] छद्मस्थज्ञानवतां या जागरिका सा तथा तां जामति ॥ अथ भगवन्तं शसस्तेषां मनाक्परिकुपितश्रमणोपासकाना कोपोपशमनाय क्रोधादिविपाकं पृच्छन्नाह तए णं से संखे समणोवासए समणं भ० महावीरं वंदइ नम०२ एवं वयासी-कोहवसट्टे णं भंते ! जीवे किं बंधए किं पकरेति किं चिणाति किं उवचिणाति , संखा! कोहवसद्दे णं जीवे आउयवनाओ सत्त कम्मपगडीओ सिढिलयंधणबहाओ एवं जहा पढमसए असंवुडस्स अणगारस्स जाव अणुपरियहइ । माणहै वसणं भंते ! जीवे एवं चेच । एवं मायावसद्देवि एवं लोभवसद्देवि जाव अणुपरियइ । तए णं ते समणो-18 वासगा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं एयमढे सोचा निसम्म भीया तत्था तसिया संसारभउविग्गा समणं भगवं महावीरं वं० नम०२ जेणेव संखे समणोवासए तेणेव उवा०२संखं समणोवासगं । न.२त्ता एयमढ़ संमं विणएणं भुजोरखामेति । तए णं ते समणोवासगा सेसं जहा आलंभियाए जाव पडिगया, भंतेत्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं बंदइ नमसइ २ एवं वयासी-पभू णं भंते ! 18 संखे समणोवासए देणाणुप्पियाणं अंतियं सेसं जहा इसिमपुत्तस्स जाव अंतं काहेति । सेवं भंते ! सेवं| भंते त्ति जाव विहरह (सूत्रं ४४०)॥१२-१॥ 'कोहवसद्दे ण'मित्यादि, 'इसिभहपुत्तस्स'त्ति अनन्तरशतोक्तस्येति ॥ द्वादशशते प्रथमः ॥ १२-१॥ दीप अनुक्रम [५३३] For P OW अत्र द्वादशमे शतके प्रथम-उद्देशकः परिसमाप्त: शंख नामक श्रमणोपासकस्य वृतांत ~21
SR No.035010
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 10 Bhagavati Mool evam Vrutti Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size111 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy