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________________ आगम (०५) [भाग-१०] "भगवती"-अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [१४], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-1, उद्देशक [१], मूलं [५१६] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५] अंगसूत्र- [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [५१६] **** इडा रूवा जाव इदे उहाणकम्मबलवीरियपुरिसकारपरकमे एवं जाव थणियकुमारा ।। पुडविकाहया ग्रहा गाई पचणुम्भवमाणा वि०, तं०-इट्टाणिट्टा फासा इट्ठाणिट्ठा गती एवं जाब परकमे, एवं जाच वणस्सइका-18 *या । इंदिया सत्तट्ठाणाई पचणुब्भवमाणा विहरंति, तंजहा-दहाणिहा रसा सेसं जहा एगिदिया. दिया णं अट्टहाणाई पञ्चणुभवमाणा वि०, तं०-इहाणिवा गंधा सेसं जहा दियाणं, चरिंदिया नवट्ठाणाई पचणुम्भवमाणा विहरंति, तं०-इवाणिहा रूवा सैसं जहा तेंदियाणं, पंचिंदियतिरिक्खजोणिया दस ठाणाई पचणुभवमाणा विहरंति, तंजहा-इटाणिट्ठा सदा जाव परकमे, एवं मणुस्सावि, वाणमंतरजो-18 भइसियवेमाणिया जहा असुरकुमारा (सूत्रं ५१६)॥ Fi नेरइया दस ठाणाई इत्यादि, तत्र 'अणिवा गईत्ति अप्रशस्तविहायोगतिनामोदयसम्पाद्या नरकगतिरूपा वा. ॥'अणिहा ठिति'त्ति नरकावस्थानरूपा नरकायुष्करूपा वा 'अणि? लावन्नेत्ति लावण्य-शरीराकृतिविशेषः 'अणिडे जसोकित्ति'त्ति प्राकृतत्वादनिष्टेति द्रष्टव्यं यशसा-सर्वदिग्गामिप्रख्यातिरूपेण पराक्रमकृतेन वा सह कीर्ति:-एकदिदि गामिनी प्रख्यातिनफलभूता वा यश-कीतिः, अनिष्टत्वं च तस्या दुष्प्रख्यातिरूपत्वात् , अणिढे उट्ठाणे इत्यादि, उस्था-13 नादयो वीर्यान्तरायक्षयोपशमादिजन्यवीर्यविशेषाः, अनिष्टत्वं च तेषां कुत्सितत्वादिति ॥ 'पुढविकाइए'त्यादि, 'छट्ठाणाईति पृथिवीकायिकानामेकेन्द्रियत्वेन पूर्वोक्तदशस्थानकमध्ये शब्दरूपगन्धरसा न विषय इति स्पर्शादीन्येव षट् से प्रत्यनुभवन्ति, 'इटाणिट्ठा फास'त्ति सातासातोदयसम्भवात् शुभाशुभक्षेत्रोत्पत्तिभावाच, 'इहाणिवा गइति यद्यपि दीप अनुक्रम [६१३] *** था. .८ Santaratinimire ~195
SR No.035010
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 10 Bhagavati Mool evam Vrutti Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size111 MB
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