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________________ आगम (०५) [भाग-१०] "भगवती"-अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [१३], वर्ग [-], अंतर-शतक [-], उद्देशक [७], मूलं [४९३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५] अंगसूत्र- [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [४९३] दीप व्याख्या उत्कृष्टप्रयलस्य तदानी निवृत्तत्वादितिभावः ॥ अनन्तरं भाषा निरूपिता, सा च प्रायो मनःपूर्विका भवतीति मनो- १३ | निरूपणायाह ७ उद्देश: अभयदेवी-| आया भंते ! मणे अन्ने मणे ?, गोयमा ! नो आया मणे अन्ने मणे जहा भासा तहा मणेचि जाव नो| मनस, या वृत्तिः२ अजीवाणं मणे, पुषिं भंते ! मणे मणिज्जमाणे मणे? एवं जहेव भासा, पुर्वि भंते ! मणे भिजति मणिज- आत्मवादि माणे मणे भिजति मणसमयवीतिक मणे भिजति ?, एवं जहेब भासा । कतिविहे गं भंते ! मणे पपणते ?. सू. ४९४ ॥२२॥ गोयमा ! चउबिहे मणे पन्नत्ते, तंजहा-सच्चे जाव असचामोसे (सूत्र ४९४)॥ आया भंते ! काये अन्नेदा कायस्या त्मवादि काये?, गोयमा! आयावि काये अन्नेचि काये, रूविं भंते ! काये अरूविकाये ?, पुच्छा, गोयमा ! रूविपिन पाला सू४९५ काये अरूविपि काए, एवं एकेके पुच्छा, गोयमा! सचित्तेवि काये अचित्तेवि काए, जीवेवि काए अजीचेचि || DI काए, जीवाणवि काए अजीवाणवि काए, पुर्वि भंते ! काये पुच्छा, गोयमा ! पुधिपि काए कायिज्जमाणेवि काए कायसमयवीतितेवि काये, पुचि भंते ! काये भिजति पुच्छा, गोयमा ! पुबिंपिकाए भिजति जाव Mil॥६२२॥ काए भिजति ॥ कहविहे गं भंते ! काये पन्नत्ते, गोयमा! सत्तविहे काये पन्नते, तंजहा-ओराले ओरा-18 लियमीसए वेउधिए वेउवियमीसए आहारए आहारगमीसए कम्मए (सूत्र ४९५) 'आया भंते ! मणे इत्यादि, एतत्सत्राणि च भाषासूत्रवन्नेयानि, केवलमिह मनोव्यसमुदयो मननोपकारी मन:४॥ पोतिनामकर्मोदयसम्पायो, भेदश्च तेषां विदलनमात्रमिति ॥ अनन्तरं मनो निरूपितं तच्च काये सत्येव भवतीति काय अनुक्रम [५८९] ~154
SR No.035010
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 10 Bhagavati Mool evam Vrutti Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size111 MB
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