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________________ आगम (०५) [भाग-१०] "भगवती"-अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [१३], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [६], मूलं [४९१-४९२] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५, अंगसूत्र- [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [४९१-४९२] -0 च्याख्या- वओ जाव पवइए, इमेणं एयारूवेणं महया अप्पत्तिएणं मणोमाणसिएणं दुक्खेणं अभिभूए समाणे अंतेपुरप- १३ शतके प्रज्ञप्तिः ॥रियालसंपरिवडे सभडमत्तोवगरणमायाए वीतीभयाओ नयराओ पडिनिग्गच्छंति पडिनि०२ पुषाणुपुर्वि देशा अभयदेवी- चरमाणे गामाणुगाम दूइज्जमाणे जेणेव चंपा नयरी जेणेव कृणिए राया तेणेव उवा०२ कूणियं राय उवसंपज्जि- अभीचे श्रा या वृत्तिः२त्ताणं विह० तत्थवि णं से विउलभोगसमितिसमन्नागए यावि होत्या, तए णं से अभीयीकुमारे समणोवासएलवकत्वादि सू ४९२ ॥६२०॥ याविहोत्था, अभिगय जाव विहरद, उदायणमि रायरिसिंमि समणुयद्धवेरे यावि होत्या, तेणं कालेणं २इमीसे हरयणप्पभाए पुढवीए निरयपरिसामंतेमु चोसहि असुरकुमारावाससयसहस्सा पत्नत्ता, तए णं से अभीयी दि कुमारे बहुइं वासाई समणोवासगपरियागं पाउणति पा०२अद्धमासियाए संलेहणाएतीसं भत्ताई अणसणाए छपहर तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिकते कालमासे कालं किचा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरय परिसामंतेसु चोयडीए आयावा जाव सहस्सेसु अन्नयरंसि आयावा असुरकुमारावासंसि असुरकुमारसे देवत्ताए उव०, तस्थ णं अत्थेग आयावगाणं असुरकुमाराणं देवाणं एगं पलिकठिई प० तत्थ णं अभीपिस्सवि देवस्स एग पलि.ठिई पण्णत्ता । सेणं भंते ! अभीयीदेवे ताओ देवलोगाओ आउक्ख०३ अणंतरं उपट्टित्ता कहिं ग० ? कहिं उव०१, गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिति जाव अंतं काहिति, सेवं भंते ! ॥ ॥६२०॥ है सेवं भंतेत्ति (सूत्रं ४९२)॥१३-६ ॥ PI 'तए ण'मित्यादि, 'सिंधुसोवीरेसुत्ति सिन्धुनद्या आसन्नाः सौवीरा-जनपदविशेषाः सिन्धुसौवीरास्तेषु 'वीईभए'त्ति | दीप अनुक्रम १ [५८७ -५८८] उदायन-राजर्षि-चरित्रं ~150
SR No.035010
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 10 Bhagavati Mool evam Vrutti Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size111 MB
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