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आगम [०५]
[भाग-९] “भगवती"-अंगस
शतक [७], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [९], मूलं [३०१-३०४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५], अंगसूत्र- [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [३०१-३०४]
दीप
कए समाणे अत्थामे अबले अवीरिए अपुरिसकारपरक्कमे अधारणिजमितिकडे तुरए निगिण्हइ तुरए निगिहित्ता रहं परावत्तेइ रहं परावत्तित्तारहमुसलाओसंगामाओ पडिनिक्खमतिरएगतमंतं अवक्कमइ एगतमंत - अवक्कमित्ता तुरए निगिण्हह २ रहं ठवेइ २त्ता रहाओ पच्चोरुहइ रहाओ २ रहाओ तुरए मोएइ तुरए मोएत्ता |तुरए विसज्जेइ २त्ता [ अन्ध ४०००] २ दन्भसंधारगं संधरह२ [पुरच्छाभिमुदे दुरूहइ दन्भसं०२]ठा पुरच्छाभिमुहे संपलियंकनिसने करयल जाव कटु एवं वयासी-नमोत्थु णं अरिहंताणं जाव संपत्ताणं नमोऽत्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स आइगरस्स जाव संपाविउकामस्स मम धम्मायरियस्स धम्मोवदेसगस्स वदामि णं भगवन्तं तत्थगयं इहगए पासउ मे से भगवं तत्थगए जाव वंदति नमसति २एवं व
यासी-पुर्विपि मए समणस्त भगवओ महावीरस्स अंतिए धूलए पाणातिवाए पश्चक्खाए जावज्जीवाए एवं| ★ जावथूलए परिग्गहे पच्चक्खाए जावज्जीवाए, इयाणिपिणं अरिहंतस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं सर्व पाणा
|तिवायं पञ्चक्खामि जावजीवाए एवं जहा खंदओ जाव एयंपिणं चरमेहिं ऊसासनीसासेहि बोसिरिस्सा-18 समित्तिकहु सन्नाहपढें मुयइ सन्नाइपर्ट मुइत्ता सल्लुद्धरणं करेति सद्धरणं करेत्ता आलोइयपडिकंते समाहि
पत्ते आणुपुवीए कालगए, तए णं तस्स वरुणस्स णागनत्तुयस्स एगे पियवालवयंसए रहमुसलं संगाम | संगामेमाणे एगेणं पुरिसेणं गाढप्पहारीकए समाणे अस्थामे अबले जाव अधारणिमितिकट्ठ वरुणं णागनसुयं रहमुसलाओ संगामाओ पडिनिक्खममाणं पासइ पासइत्ता तुरए निगेण्हइ तुरए निगेण्हित्ता जहा
अनुक्रम [३७३-३७६]
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रथमुशलं संग्राम, वरुण-नागपुत्रस्य एकावतारित्वं
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