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________________ आगम [०५] [भाग-९] “भगवती"-अंगसूत्र-५ [मूलं+वृत्ति:] शतक [९], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [३३], मूलं [३८४] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५, अंगसूत्र- [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [३८४] दीप व्याख्या- विप्पजहियचे भविस्सइ, से केस णं जाणइ अम्म! ताओ! के पुर्वि गमणयाए के पच्छा गमणपाए ,तं ९शतके प्रज्ञप्तिः इच्छामि णं अम्मताओ! तुज्झेहिं अन्भणुन्नाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव पबहत्तए। उद्देशुः३३ अभयदेवी तए णं तं जमालिं खत्तियकुमार अम्मापियरो एवं वयासी-इमं च ते जाया ! सरीरगं पविसिहरूव- दाक्षायू या वृत्तिः२ लालक्खणवंजणगुणोववेयं उत्तमबलवीरियसत्तजुत्तं विण्णाणवियक्खणं ससोहग्गगुणसमुस्सियं अभिजायम | सू ३८४ ॥४१५ हक्खमं विविहवाहिरोगरहियं निरुवहयउदत्तलटुं पंचिंदियपडपढमजोवणत्धं अणेगउत्तमगुणेहिं संजुत्तं तं | अणुहोहि ताव जाव जाया! नियगसरीररूवसोहग्गजोवणगुणे, तओ पच्छा अणुभूयनियगसरीररूवसोहग्गजोषणगुणे अम्हेहिं कालगएहिं समाणेहिं परिणयवये वड्डियकुलवंसतंतुकमि निरचयक्खे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं मुंडे भवित्ता आगाराओ अणगारियं पवइहिसि, तए णं से जमाली खत्तियकुमारे अम्मापियरो एवं बयासी-तहावि णं तं अम्मताओ! जन्नं तुझे ममं एवं वदह-इमं च ण ते जाया! सरीरगं तं चेव जाव पवाहिसि, एवं खलु अम्मताओ! माणुस्सगं सरीरं दुक्खायपर्ण विविहचाहिसयसनिकेतं अट्ठियकट्टियं छिराण्हारुजालओणद्धसंपिणद्धं मट्टियभंड व दुव्वलं असुइसंकि लिटुं|8 अणिट्ठवियसब कालसंठप्पिय जराकुणिमजज्जरघरं व सडणपडणविद्धंसणधम्म पुर्वि वा पच्छा वा अवस्सवि-IC ॥४६५|| प्पजहियवं भविस्सह, से केस णं जाणति ? अम्मताओ के पतिं चेव जाव पचहत्तए । तए णं तं जमालि | खत्तियकुमारं अम्मापिपरोएवं वयासी-इमाओपते जाया! विपुलकुलबालियाओ सरित्तयाओसरिषयाओ अनुक्रम [४६४] Hamaram.org जमाली-चरित्रं ~372
SR No.035009
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 09 Bhagavati Mool evam Vrutti Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages552
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size120 MB
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