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आगम [०५]
[भाग-९] “भगवती"-अंगस
शतक [७], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [२], मूलं [२७३] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५, अंगसूत्र- [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [२७३]
यतिरिक्खपुच्छा, गोयमा! पंचिंदियतिरिक्ख० नो सबमूलगुणपञ्चक्खाणी देसमूलगुणपञ्चक्खाणी अपचक्खाणीचि, मणुस्सा जहा जीवा, वाणमंतरजोइसवेमाणिया जहा नेरइया । एएसिणं भंते! जीवाणं सबमूलगुण
पञ्चक्खाणीणं देसमूलगुणपञ्चक्खाणीणं अपञ्चक्खाणीण य कयरेशहितो जाव विसेसाहिया वा ?, गोय-3 Mमा। सबथोवा जीवा सम्वमूलगुणपच्चक्खाणी देसमूलगुणपरक्खाणी असंखेज्जगुणा अपञ्चक्खाणी अणंत
गुणा । एवं अप्पाबहुगाणि तिन्निवि जहा पढमिल्लए दंडए, नवरं सबत्योवा पंचिंदियतिरिक्खजोणिया देसमूलगुणपञ्चक्खाणी अपञ्चक्खाणी असंखेजगुणा । जीवा णं भंते ! किं सबुत्तरगुणपञ्चक्खाणी देसुत्तरगुण-18 | पञ्चक्रवाणी अपचक्खाणी, गोयमा ! जीवा सन्चुत्तरगुणपचक्रवाणीवि तिन्निवि, पंचिंदियतिरिक्खजोणिया मणुस्सा य एवं चेव, सेसा अपञ्चक्खाणी जाच वेमाणिया। एएसिणं भंते ! जीवाणं सव्वुत्तरगुणपञ्चक्खाणी अप्पायहुगाणि तिन्निधि जहा पदमे दंडए जाव मणूसाणं । जीवा गं भंते । किं संजया असंजया संजयासंजया?, गोयमा ! जीवा संजयावि असंजयावि संजयासंजयावि तिन्निवि, एवं जहेव पन्नवणाए तहेव भाणियचं, जाव बेमाणिया, अप्पाबहुगं तहेव तिण्हवि भाणियत्वं ॥ जीवा णं भंते । किं पञ्चरखाणी अपचक्खाणी. | पञ्चक्स्वाणापचक्खाणी?, गोयमा जीवा पचक्खाणीवि एवं तिन्निवि, एवंमणुस्साणवितिनिधि, पंचिंदियतिरिक्खजोणिया आइल्लविरहिया सेसा सधे अपचक्वाणी जाब बेमाणिया। एएसिणं भंते ! जीवाणं पञ्चवखाणीणं जाच विसेसाहिया चा?, गोयमा ! सबथोबा जीवा पञ्चक्खाणी पचक्खाणापञ्चक्खाणी असंखे
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दीप अनुक्रम [३४३]
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प्रत्याख्यान-विषयक; अल्प-बहुत्वं
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