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आगम [०५]
[भाग-९] “भगवती"-अंगसूत्र-५ [मूलं+वृत्ति:]
शतक [९], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [३२], मूलं [३७३] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५, अंगसूत्र- [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति:
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प्रत सूत्रांक [३७३]
| भवेयुः तन्नामिना तत्स्थानानां च बहुत्वात् , इह प्रक्रमे द्विकयोमे षड् भङ्गकाखिकयोगे पञ्चदश चतुष्कसंयोगे विंशति पत्रकसंयोगे पञ्चदश षड्योगे षट् सप्तकयोगे त्वेक इति ॥ अथ रलप्रभादिष्वेव नारकप्रवेशनकस्याल्पत्वादिनिरूपयायाह-एयस्स ण'मित्यादि, तत्र सर्वस्तोकं सप्तमपृथिवीनारकप्रवेशनक, तद्गामिना शेषापेक्षया स्तोकस्वात् , ततः षष्ट्यामसळयातगुणं, तनामिनामसपातगुणत्वात् , एवमुत्तरत्रापि ।। अथ तिर्यग्योनिकप्रवेशनकप्ररूपणायाहतिरिक्खजोणियपवेसणए णं भंते ! कतिविहे पन्नत्ते ?, गंगेया ! पंचविहे पन्नते, तंजहा-एगिदियतिरिखजोणियपवेसणए जाव पंचेंदियतिरिक्खजोणियपवेसणए । एगे भंते ! तिरिक्खजोणिए तिरिक्खजोणिय-31 पवेसणएणं पविसमाणे किं एगिदिएसु होज्जा जाव पंचिदिएसु होज्जा?, गंगेया! एगिदिएसु वा होजा जाव पंचिंदिएसु वा होजा । दो भंते । तिरिक्खजोणि- योस्तिरश्चोतंक | या पुच्छा, गंगेया ! एगिदिएसु वा होजा जाब पंचिंदियएसु वा होना, अहवा एगे एगिदि- योगे १० भए एम होजा एगे बेईदिएसु होजा एवं जहा नेरइयपबेसणए तहा तिरिक्खजोणियपवेसणएवि ३२५ एवं भाणियचे जाव असंखेजा। उक्कोसा भंते!
तिरिक्खजोणिया पुच्छा, गंगेया ! सधेवि ताव | " द इंदिएसुपा होजा, एवं जहा नेरतिया चारिया | २५ ४५तहा तिरिक्खजोणियावि चारेयषा, पर्गि-1 दिया अमुश्चंतेसु दुयासंजोगो तियासंजोगो चउकसंजोगो पंचसंजोगो उबउजिऊण भाणियबो जाव अहवाल एगिदिएम या बेईदिय जाव पंचिंदिएमु वा होजा ॥ एयस्स णं भंते ! एगिदियतिरिक्खजोणियपवेसणगस्सा
दीप अनुक्रम [४५३]
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पाापत्य गांगेय-अनगारस्य प्रश्ना:
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