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आगम [०५]
[भाग-९] “भगवती”- अंगसूत्र-५ [मूलं+वृत्ति:]
शतक [९], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [३२], मूलं [३७१-३७२] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५], अंगसूत्र- [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [३७१-३७२]
दीप अनुक्रम [४५१४५२]
व्याख्या- संतरंपि इंदिया उबद्दति निरंतरंपि इंदिया उबट्टति, एवं जाव वाणमंतरा, संतरंभंते जोइसिया पति श तके
प्रज्ञप्तिः पुच्छा, गंगेया संतरपिजोइसिया चयंति निरंतरपि जोइसिया चयंति, एवं जाय वेमाणियावि (सूत्रं १७२) उद्देशः ३२ अभयदेवी
सान्तरायुCM 'ते णमित्यादि, 'संतरंति समयादिकालापेक्षया सविच्छेदं, तत्र चैकेन्द्रियाणामनुसमयमुत्पादात् निरन्तरत्वमन्येषा या वृत्तिः तूत्पादे विरहस्यापि भावात् सान्तरत्वं निरन्तरत्वं च वाच्यमिति ॥ उत्पन्नानां च सतामुद्वर्तना भवतीत्यतस्ता निरूपय
त्पादोद्वर्त्तने
सू३७१. ॥४३॥ माह-संतरं भंते ! नेरइया उववदृती'त्यादि ॥ उद्भुत्तानां च केपाश्चिद्गत्यन्तरे प्रवेशनं भवतीत्यतस्ततिरूपणायाह
४ ३७२ काविहे गं भंते ! पवेसणए पन्नत्ते, गंगेया ! चउबिहे पवेसणए पन्नत्ते तंजहा-नेरहयपवेसणए तिरि-1 यजोणियपवेसणए मणुस्सपवेसणए देवपवेसणए । नेरइयपवेसणए णं भंते ! कहविहे पनसे ,गंगेया।। सत्तविहे पन्नत्ते, तंजहा-रयणप्पभापुढविनेरइयपवेसणए जाय अहेसत्तमापुढविनेरइयपवेसणए ॥ एगे | भंते । नेरइए नेरइयपबेसणएणं पविसणमाणे किं रयणप्पभाए होजा सकरप्पभाए होजा जाव अहे
सत्तमाए होजा, गंगेया ! रयणप्पभाए वा होजा जाव अहेससमाए वा होजा। दो भंते ! नेरइया नेरह| यपवेसणएर्ण पविसमाणा किं रयणप्पभाए होजा. जाव अहेसत्तमाए होजा?, गंगेया ! रयणप्पभाए वा होजा जाव अहेससमाए वा होजा, अहवा एगे रयणप्पभाए एगे सकरप्पभाए होज्जा अहचा एगे रपण-IN
प्पभाए एगे वालपप्पभाए होजा जाव एगे रयणप्पभाए एगे अहेसत्तमाए होजा, अहवा एगे सकरप्पभाएx ४ाएगे वालुयप्पभाए होजा जाव अहवा एगे सकरप्पभाए एगे अहेसत्समाए होजा, अहवा एगे वालुपप्पभाए
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पार्वापत्य गांगेय-अनगारस्य प्रश्ना:
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