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________________ आगम [०५] [भाग-९] “भगवती”- अंगसूत्र-५ [मूलं+वृत्ति:] शतक [८], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [१०], मूलं [३६०-३६१] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५, अंगसूत्र- [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [३६०-३६१] दीप अनुक्रम [४३६-४३७]] व्याख्या-12 पुच्छा, गोयमा ! दोवि परोप्परं नियम, एवं गोत्तेणवि समं भाणियचं, जस्स णं भंते ! आउयं तस्स अंत-Pleशतके प्रज्ञातारायं.१, पुरुछा, गोयमा ! जस्स आउयं तस्स अंतराइयं सिय अस्थि सिय मस्थि, जस्स पुण अंतराइयं|४|| उद्देशः१० अभयदेवीया वृत्तिः | तस्स आउयं नियमा ५। जस्स णं भंते ! नाम तस्स गोयं जस्स गं गोयं तस्सणं नाम ? पुच्छा, गोयमा ज्ञानावरजस्स णं णामं तस्स णं नियमा गोयं जस्स णं गोयं तस्स नियमा नाम, गोयमा ! दोवि एए परोप्परं नियमा, णादिकम॥४२३॥ जस्स णं भंते ! णामं तस्स अंतराइयं० १ पुच्छा, गोयमा ! जस्स नामं तस्स अंतराइयं सिय अस्थि सियासू ३६० 1 संवेधः नस्थि, जस्स पुण अंतराइयं तस्स नाम नियमा अस्थि । जस्स णं भंते ! गोयं तस्स अंतराइयं०१ पुच्छा, जीवानां पु. गोयमा जस्स गंगोयं तस्स अंतराइयं सिय अस्थि सियनत्थि,जस्स पुण अंतराइयं तस्स गोयं नियमा अत्थिाद्लत्वादि (सूत्रं ३६०) जीवे णं भंते । किं पोग्गली पोग्गले ?, गोयमा ! जीवे पोग्गलीवि पोग्गलेवि, से केणद्वेणं भंते || || एवं बुचइ जीवे पोग्गलीवि पोग्गलेवि?, गोयमा! से जहानामए छत्सेणं छत्ती दंडेणं दंडी घडेणं घडी पडेणं पटी | 5 करेणं करी एवामेव गोयमा ! जीवेवि सोइंदियचक्खिदियघाणिदियजिभिदियफासिंदियाई पहुच पोग्गली, जीवं पडच पोग्गले, से तेणट्टेणं गोयमा! एवं बुचइ जीचे पोग्गलीवि पोग्गलेवि । नेरहए णे मंते! किं | ॥४२॥ पोग्गली, एवं चेव, एवं जाव वेमाणिए नवरं जस्स जइ इंदिया तस्स तइवि भाणियचाई। सिडेणं भंते किं पोग्गली पोग्गले, गोयमा ! नोपोग्गली पोग्गले, से केण?णं भंते । एवं बुच्चइ जाव पोग्गले ?, गोयमा! ज्ञानावरण-आदि कर्मन: सह अन्य कर्माणाम् संबंध: ~288
SR No.035009
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 09 Bhagavati Mool evam Vrutti Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages552
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size120 MB
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