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________________ आगम [०५] [भाग-९] “भगवती"-अंगस शतक [७], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [१], मूलं [२६६] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५, अंगसूत्र- [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [२६६] त्वात् कर्मणा-स्पृष्टो बद्धः 'नो अदुक्खी'त्यादि, 'नो' नैव अदुःखी-अकर्मा दुःखेन स्पृष्टः, सिद्धस्यापि तत्प्रसङ्गादिति, ला एवं पंच दंडका यत्ति एवम्' इत्यनन्तरोक्ताभिलापेन पञ्च दण्डका नेतव्याः, तत्र दुःखी दुःखेन स्पृष्ट इत्येक उक्त एष १, 'दुक्खी दुक्खं परियाई ति द्वितीयः,तत्र 'दुःखी' कर्मवान् 'दुःख' कर्म पर्याददाति सामस्त्येनोपादत्ते, निधत्तादि करोतीत्यर्थः २, 'उदीरेइ'त्ति तृतीयः ३, 'वेएइ'त्ति चतुर्थः ४,'निजरेइ'त्ति पञ्चमः ५, उदीरणवेदननिर्जरणानि तु व्याख्या| तानि प्रागिति ॥ कर्मबन्धाधिकारात्कर्मबन्धचिन्तान्वितमनगारसूत्र, अनगाराधिकाराच्च तत्पानकभोजनसूत्राणि| अणगारस्स णं भंते ! अणाउ गच्छमाणस्स वा चिट्ठमाणस्स वा निसिपमाणस्स (वा) तुयहमाणस्स वा अणाउत्तं वत्थं पडिग्गहं कंबलं पायपुंछणं गेण्हमाणस्स चा निक्खिवमाणस्स वा तस्स णं भंते । किं ईरियावहिया किरिया कजह ? संपराच्या किरिया कज्जा ?, गोनो ईरियावहिया किरिया कज्जति संपराया किरिया कजति ।से केणद्वेणं.१, गोयमा ! जस्स णं कोहमाणमायालोभा वोच्छिन्ना भवंति तस्स गं । ईरियावहिया किरिया कजइनो संपराइया किरिया कजइ, जस्स णं कोहमाणमायालोमा अवोच्छिन्ना भवंति तस्स णं संपरायकिरिया कजइनो ईरियावहिया, अहासुतं रीयमाणस्स ईरियावहिया किरिया कज्जा उ-४ & स्त्रीयमाणस्स संपराइया किरिया कज्जइ, से गं उस्मुत्तमेव रियति, से तेणड्डेणं. सूत्रं २६७) अह भंते ! सइंगालस्स सधूमस्स संजोपणादोसहस्स पाणभोयणस्स के अढे पण्णत्ते, गोयमा! जे णं निग्गंथे वा नि-1 ग्गंधी चा फासुएसणिज्ज असणपाण ४ पडिगादित्ता मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोचवने आहारं आहारेति एस दीप अनुक्रम [३३४] For P OW ~23~
SR No.035009
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 09 Bhagavati Mool evam Vrutti Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages552
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size120 MB
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