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आगम [०५]
[भाग-९] “भगवती"-अंगस
शतक [७], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [१], मूलं [२६५] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५, अंगसूत्र- [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [२६५]
आणुपुचीए परिकम्मेमाणे २ दम्भेहि य कुसेहि य वेदेइ २ अट्ठहिं मट्टियालेवेहिं लिंपड २ उण्हे दलयति भूति २ सुकं समाणं अत्याहमतारमपोरसियंसि उदगंसि पक्खिवेजा, से नूर्ण गोयमा ! से तुये। तेसिं अट्ठण्डं महियालेवेणं गुरुयत्ताए भारियत्साए गुरुसंभारियत्ताए सलिलतलमतिवहत्ता अहे धर, |णितलपइहाणे भवइ, हंता भवइ, अहे णं से तुंबे अट्ठण्हं मट्टियालेवेणं परिवखएणं धरणितलमतिहै वइत्ता उपि सलिलतलपट्ठाणे भवइ, हंता भवइ, एवं खलु गोयमा ! निस्संगयाए निरंगणयाए गइपरि
गामेणं अकम्मरस गई पन्नायति । कहनं भंते ! बंधण छेदणयाए अकम्मस्स गई पन्नसा', गोयमा ! से जहा४ नामए-कलसिंवलियाइ वा मुग्गसिबलियाइ वा माससिंवलियाइ वा सिंपलिसिंबलियाइ वा एरंडर्मिजिदयाइ वा उण्हे दिनासुका समाणी फुडित्ता णं एगंतमंत गच्छह, एवं खलु गोयमा 10 कहनं भंते ! निरं-13
धणयाए अकम्मस्स गती, गोयमा 1 से जहानामए-धूमस्स इंधणविप्पमुकस्स उडे वीससाए निवाघाएणं,
गती पवत्तति, एवं खलु गोयमा! 1कहनं भंते ! पुचप्पओगेणं अकम्मरस गती पन्नता, गोयमा! से लहानामए-कंडस्स कोदंडविप्पमुकस्स लक्खाभिमुही निवाधाएणं गती पवत्तइ, एवं खलुगोयमा !नीसंगया
ए निरंगणयाए जाव पुषप्पओगेणं अकम्मस्स गती पण्णता ॥ (सूत्रं २६५)॥ 'गई पण्णायइ'त्ति गतिःप्रज्ञायते अभ्युपगम्यते इतियावत् निस्संगयाए'त्ति'निःसङ्गतया'कर्मामलापगमेन निरंगणयापत्ति नीरागतया मोहापगमेनगतिपरिणामेण ति गतिस्वभावतयाऽलाबुद्रव्यस्येवबंधणच्छेयणयाए'त्ति कर्मबन्धनछेद
NAGACASS
दीप अनुक्रम [३३३]
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