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आगम [०५]
[भाग-९] “भगवती"-अंगस
शतक [८], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [१], मूलं [३१३] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५, अंगसूत्र- [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [३१३]
दीप
व्याख्या- रावि, एवं जाव वणस्सइकाइयाणं चक्कओ भेदो, बेइंदियतेइंदियचारिदियाणं दुयओ मेदो पञ्चत्तगा यPट शतके प्रज्ञप्तिः
अपज्जत्तगाय । जइ पंचिंदियओरालियसरीरकायप्पओगपरिणए किं तिरिक्खजोणियपंचिंदियओरालियसरी-18|| सरकायप्पओगपरिणए मणुस्सपंचिंदिय जाव परिणए , गोयमा! तिरिक्खजोणिय जाव परिणए वा मणु- मिश्रविश्र
स्सपंचिंदिय जाव परिणए बा, जइ तिरिक्खजोणिय जाव परिणए किंजलचरतिरिक्खजोणिय जाय परि-15 सापरिणा॥३३॥ णए वा थलचरसहचर०, एवं चउक्कओ भेदो जाव खहचराणं । जइ मणुस्सपचिंदिय जाव परिणए कि संमु- मोसू३११
३१२एकदच्छिममणुस्सपंचिंदिय जाव परिणए गम्भवकंतियमणुस्स जाव परिणए ?, गोयमा ! दोसुवि, जइ गम्भव
व्यपरिणातियमणुस्स जाव परिणए किं पचत्तगब्भवतिय जाय परिणए अपनत्तगन्भवतियमणुस्सपंचिंदियओरा-1
मासू३१३ लियसरीरकायप्पयोगपरिणए ?, गोयमा ! पजत्तगन्भवतिय जाव परिणए वा अपजसगन्भवतिय जाव परिणए १ । जइ ओरालियमीसासरीरकायप्पओगपरिणए किं एगिदियओरालियमीसासरीरकायापओगपरिणए बेईदियजावपरिणए जाव पंचेंदियओरालिय जाव परिणए, गोयमा ! एंगिदियओरालिय एवं जहा ओरालियसरीरकायप्पयोगपरिणएणं आलावगो भणिो तहा ओरालियमीसा सरीरकायप्पओगपरिणएवि आलावगो भाणियबो, नवरं वायरवाउक्काइयगन्भवतियपंचिंदियतिरिक्खजोणियगन्भवतियमणुस्साणं, एएसि गं पज्जत्तापज्जत्तगाणं सेसाणं अपजत्तगाणं २। जई वेउवि
॥३३॥ यसरीरकायप्पयोगपरिणए किं एगिदियवेउवियसरीरकायप्पओगपरिणए जाव पंचिंदियवेउवियसरीर जाव
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अनुक्रम [३८६]
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