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आगम
[०५]
प्रत
सूत्रांक
[३१०]
दीप
अनुक्रम [३८३]
[भाग-९] “भगवती” - अंगसूत्र - ५ [ मूलं + वृत्तिः]
शतक [८], वर्ग [-], अंतर् शतक [-] उद्देशक [१], मूलं [ ३१०]
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.. आगमसूत्र - [०५], अंगसूत्र- [ ०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्तिः
कम्मासरीर पयोगपरिणया ते सोइंदियचक्खिदिय जाव फासिंदियपयोगपरिणया ५ ॥ जे अपज्जन्ता सुम| पुढविकाइय एगिंदियपयोगपरिणया ते वन्नओ कालवन्नपरिणयावि नील० लोहिय• हालिद्द• सुकिल्ल• गंधओ | सुभिगंध परिणयावि दुभिगंधपरिणयावि रसओ तित्तरसपरिणयावि कड्डयरसपरिणयावि कसायरसप० अंबिलरसप० मधुररसप० फासओ कक्खडफासपरि० जाव लुक्खफासपरि० संठाणओ परिमंडल संठा|णपरिणयावि बहु० तंस० चउरंस० आयतसंठाणपरिणयावि, जे पत्ता सुमपुढवि० एवं चैव एवं जहाणुपुबीए नेयवं जाव जे पज्जत्ता सङ्घहसिद्ध अणुत्तरोववाइय जाव परिणयावि ते वन्नओ कालवन्नपरिणयावि जाब | आययसंठाणपरिणयावि ६ || जे अपजत्ता सुहुम पुढवि० एगिंदियओरालियतेयाक म्मासरीरप्पयोगपरिणया ते बन्नओ कालवन्नपरि० जाव आययसंठाणपरि० जे पत्ता सुमपुढवि० एवं वेव, एवं जहाणुपुबीए नेयवं जस्स जइ सरीराणि जाच जे पत्ता सबट्टसिद्ध अणुत्तरोववाह यदेवपंचिदिद्यविउद्विद्यते या कम्मा सरीरा जाव परिणया ते बनओ कालवन्नपरिणयावि जाब आयतसंठाणपरिणयादि ७ ॥ जे अपजन्त्ता सुमपुढविकाइय| एगिंदियफा सिंदियपयोगपरिणया ते वन्नओ कालवन्नपरिणया जाव आययसंठाणपरिणयावि जे पत्ता | सुहमपुढवि एवं चैव एवं जहाणुपुबीए जस्स जइ इंदियाणि तस्स तत्तियाणि भाणियवाणि जाव जे पत्ता सबइसिद्ध अणुत्तर जावदेवपंचिंदियसोइंदिय जाव फासिंदियपयोगपरिणयाचि ते वन्नओ कालवन्नपरिणया जाव आयय संठाणपरिणयादि ८ ॥ जे अपजत्ता सुमपुढ विकाइयए गिंदियओरालियते या कम्माफा सिंदिग्रपयो
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