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आगम
[०५]
प्रत
सूत्रांक
[३१०]
दीप
अनुक्रम [३८३]
[भाग-९] “भगवती” - अंगसूत्र - ५ [ मूलं + वृत्तिः]
शतक [८], वर्ग [-], अंतर् शतक [-] उद्देशक [१], मूलं [ ३१०]
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.. आगमसूत्र - [०५], अंगसूत्र- [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्तिः
व्याख्या
प्रज्ञप्तिः अभयदेवीया वृत्तिः १
॥३२९||
गेवेज्जगकप्पातीतग० जाव उवरिम २ गेविजगकप्पातीय० । अणुत्तरोववाइयकप्पातीतगवेमाणियदेवपचिंदियपयोगपरिणया णं भंते ! पोग्गला कदविहा पण्णत्ता ?, गोपमा ! पंचविहा पण्णत्ता, तंजहा-विजयअणु|त्तरोववाइय० जाव परिण० जाव सङ्घट्टसिद्धअणुत्तरोववाइयदेवपंचिंदिय जाव परिणया । सुमपुढचिकाइयएगिंदियपयोगपरिणया णं भंते ! पोग्गला कइ विहा पण्णत्ता ?, गोयमा ! दुबिहा पण्णत्ता, [केई अपतगं पदमं भणति पच्छा पज्जत्तगं, ] पज्जत्तगसुहुमपुढविकाइय जाव परिणया य अपात्तसुहमपुढविकाइय जाव परिणया य, वादरपुढविकाइयएगिंदिय० जाव वणस्सइकाइया, एकेका दुबिहा पोग्गला-सुहमा य यादरा य पचत्तगा अपजतगा य भाणियचा । दियपयोगपरिणया णं पुच्छा, गोयमा ! दुविहा पन्नत्ता, तंजा| पज्जन्तर्वेदियपयोगपरिणया य अपजन्तग जाव परिणया य, एवं तेइंदियावि एवं चउरिंदियावि । रयणप्पभापुढविनेरइय० पुच्छा, गोयमा ! दुविदा पश्नत्ता, तंजहा-पज्जतगरयणप्पभापुढवि जाव परिणया य अपजतगजावपरिणया प, एवं जाव आहेसन्तमा । संमुच्छिमजलयर तिरिक्खपुच्छा, गोयमा ! दुबिहा पत्ता, तंजा-पजत्तग० अपलत्तग०, एवं गन्भवयंतियाचि, समुच्छिमच उप्पयथलयरा एवं चैव गन्भवतिया य, | एवं जाव संमुच्छिमखहयर गन्भवतिया य एक्केके पजन्तगा य अपजन्तगा य भाणियथा । संमुच्छिममणुस्सपंचिदियपुच्छा, गोयमा ! एगविहा पश्नत्ता, अपज्जन्तगा चेव । गन्भवकंतियमणुस्सपंचिंदियपुच्छा, गोयमा ! दुविहा पन्नता, तंजहा - पञ्चत्तगगग्भवकंतियावि अपज्जन्त्तगगन्भवकंतियाबि । असुरकुमारभवणवासिदे
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~ 100~
८ शतके
उद्देशः १ प्रायोगिक
परिणामः
सू ३१०
॥ ३२९॥
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