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________________ आगम (०५) [भाग- ८] "भगवती"-अंगसूत्र-५/१(मूलं+वृत्ति:) शतक [६], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [५], मूलं [२४२] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५, अंगसूत्र- [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [२४२] CSC9C-% 9C RECORRORM केरिसियाओ वनेणं पन्नताओ?, गोयमा! कालाओ जाव खिप्पामेव वीतीवएज्जा । कण्हरातीओ णं भंते ! कति |मामधेजा पण्णता? गोयमा! अट्ठनामधेजा पण्णत्ता, तंजहा-कण्हरातित्ति वा मेहरातीति वा मघावती()तिया माघवतीति वा वायफलिहेति वा वायपलिक्खोभेइ वा देवफलिहेड या देवपलिक्खोभेति वा । कण्हरातीओ ॥ण भंते !किं पुढविपरिणामाओ आउपरिणामाओजीवपरिणामाओ पुग्गलपरिणामाओ ?, गोयमा ! पुढवीपरि-19 |णामाओ नो आउपरिणामाओजीवपरिणामाओवि पुग्गलपरिणामाओ पूर्वी |वि। कण्हरातीसुण भंते ! सवे पाणा भूया जीवा सत्ता उववन्नपुवा ?, | हंतागोयमा! असईअदुवा अर्णतखुत्तो नो चेव णं बादर आउकाइयत्साए थादरअगणिकाइयत्ताए वा बादरवणप्फतिकाइयत्ताए वा (सूत्रं २४२) आर्चिमीलि ___ 'कपहराईओ'त्ति कृष्णवर्णपुनलरेखाः 'हर्ष'ति समं किलेति वृत्तिकारः & प्राह 'अक्खाडगे'त्यादि, इहआखाटकः-प्रेक्षास्थाने आसनविशेषलक्षणस्तत्सं स्थिताः, स्थापना चेयम्-'नो असुरों' इत्यादि, असुरनागकुमाराणां तत्र गमनासम्भवादिति ॥ 'कण्हराइति वत्ति पूर्ववत्, मेघराजीति वा काल| मेघरेखातुल्यत्वात्, मति वा तमिश्रतया पठनारकपृथषीतुल्यत्वात्, माघवतीति वा तमिश्रतयैव सप्तमनरकपृथिवीतुल्यत्वात् , 'वायफलिहेइ दीप अनुक्रम [२९२-२९४] I दमप्रतिष्ठान श्वरोचन %E Ureena ५चन्द्रा दधिश ITDHRS धसूराम REST KAMunmurary.orm कृष्णराजी-स्वरूपं ~554~
SR No.035008
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 08 Bhagavati Mool evam Vrutti Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages592
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size129 MB
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