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आगम (०५)
[भाग- ८] "भगवती"-अंगसूत्र-५/१(मूलं+वृत्ति:)
शतक [६], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [४], मूलं [२३९] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५, अंगसूत्र- [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [२३९]
दीप अनुक्रम [२८६]
जीवे णं भंते ! कालाएसेणं किं सपदेसे अपदेसें ?, गोयमा ! नियमा सपदेसे । नेरतिए णं भंते ! काला-12 | देसेणं किं सपदेसे अपदेसे ?, गोयमा ! सिय सपदेसे सिय अपदेसे, एवं जाव सिद्धे । जीवा णं भंते ! काला|| देसेणं किं सपदेसा अपदेसा, गोयमा! नियमा सपदेसा । नेरइया णं भंते ! कालादेसेणं किं सपदेसा ट्रा अपदेसा?, गोयमा ! सवि ताव होजा सपदेसा १ अहवा सपएसा य अपदेसे य२ अहवा सपदेसा य
अपदेसा य ३, एवं जावथणियकुमारा ॥ पुढविकाइया णं भंते ! किंसपदेसा अपदेसा, गोयमा सपदेसावि
अपदेसावि, एवं जाव वणप्फइकाइया, सेसा जहा नेरइया तहा जाब सिद्धा॥ आहारगाणं जीवेगेंदियवजो तिय[४|| भंगो, अणाहारगाणं जीवेगिदियवजा उम्भंगा एवं भाणियवा-सपदेसा वा १ अपएसा वा २ अहवा सपदेसे य ★ अप्पदेसे य ३ अहवा सपदेसे य अपदेसाय ४ अहवासपदेसा य अपदेसे य ५ अहवा सपदेसा य अपदेसा य Wils. सिद्धेहि तियभंगो, भवसिद्धिया अभवसिद्धिया [भवसिद्धिया] जहा ओहिया, नोभवसिद्धियनोअभवसि|| द्धिया जीवसिद्धेहिं तियभंगो, सण्णीहि जीवादिओ तियभंगो, असपणीहिं एगिदियवजो तिय भंगो, नेरहय* देवमणुएहि छम्भंगो, नोसन्निनोअसन्निजीवमणुयसिद्धेहिं तियभंगो सलेसा जहा ओहिया ॥ कपहलेस्सानील
लेस्सा काउलेस्सा जहा आहारओ नवरं जस्स अस्थि एयाओ, तेउलेस्साए जीवादिओ तियभंगो, नवरं पुढविकाइएसु आउवणप्फतीसु छन्भंगा, पम्हलेसमुक्कलेस्साए जीवादिओहिओ लियभंगो, अलेसीहिं जीवसिद्धेहिं । |तियभंगो मणुस्से उभंगा, सम्मदिद्विहिं जीवाइतियभंगो, विगलिं दिएसु छन्भंगा, मिच्छदिविहिं एगिदिय
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