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आगम (०५)
[भाग- ८] "भगवती"-अंगसूत्र-५/१(मूलं+वृत्ति:)
शतक [६], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-1, उद्देशक [३], मूलं [२३६] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५, अंगसूत्र- [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति:
स्थितिः
प्रत सूत्रांक [२३६]]
दीप अनुक्रम [२८३]
व्याख्या- धाकालवर्जितः कर्मनिषेककालो भवति, एवमन्यकर्मस्वप्यबाधाकालो व्याख्येयो, नवरमायुषि त्रयस्त्रिंशत्सागरोपमाणि ६ शतके
प्रज्ञप्तिः निषेकापूर्वकोटी त्रिभागश्चाबाधाकाल इति । 'वेयणिजं जहन्नेणं दो समय'त्ति केवलयोगप्रत्ययवधापेक्षया वेदनीय अभयदेवी- द्विसमयस्थितिकं भवति, एकत्र बध्यते द्वितीये वेद्यते, यच्चोच्यते 'वेयणियस्स जहन्ना वारस नामगोयाण अह(उ)मुहुत्त'त्ति दू
कर्मप्रकृतिया वृत्तिः१ तत्सकषायस्थितिबन्धमाश्रित्येति वेदितव्यमिति ॥
सू २३६ ॥२५७॥ नाणावरणिज्जे णं भंते ! कम्मं किं इत्थी बंधइ पुरिसो बंधइ नपुंसओ बंधइ ? णोइत्थी नोपुरिसो नोनपुं
सओ बंधह, गोयमा ! इत्थीवि बंधद पुरिसोवि बंधइ नपुंसओवि बंधइ नोइत्थी नोपुरिसो नोनपुंसओ सिय बंधइ सिय नो बंधइ एवं आउगवजाओ सत्स कम्मप्पगडीओ॥ आउगे भंते ! कम्मं किं इत्थी बंधा | पुरिसो बंधा नपुंसओ बंधह०१ पुच्छा, गोयमा ! इत्थी सिय बंधह सिय नो बंधह, एवं तिन्निवि भाणियचा, || 2 नोइत्थी नोपुरिसो नोनपुंसओ न बंध ॥णाणावरणिजणं भंते ! कम्मं किं संजए बंधह असंजए एवं संजयासंजए बंधह नोसंजयनोअसंजएनोसंजयासंजए बंधति !, गोयमा। संजए सिय बंधति सिय नो
बंधति असंजए बंधह संजयासंजएवि बंधइ नोसंजएनोअसंजएनोसंजयासंजए न बंधति, एवं आउगवजाओ लसत्तवि, आउगे हेडिल्ला तिन्नि भयणाए उवरिल्ले ण बंधइ ।। णाणावरणिज्नं णं भंते ! कम्मं किं सम्मदिट्टी ||२५७॥
बंधद मिच्छद्दिट्टी बंधइ सम्मामिच्छदिट्ठी बंधद, गोयमा ! सम्मदिट्टी सिय बंधइ सिय नो बंधा मिच्छविट्ठी आबंधइ सम्मामिच्छदिट्ठी बंधइ, एवं आउगवजाओ सत्तवि, आऊए हेडिल्ला दो भयणाए सम्मामिच्छदिट्टी
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ज्ञानावरणियादि: कर्मन: बंधका:
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