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________________ आगम (०५) [भाग- ८] "भगवती"-अंगसूत्र-५/१(मूलं+वृत्ति:) शतक [9], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [१], मूलं [१३५-१३७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५, अंगसूत्र- [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [१३५-१३७] वेदमित्याचादेशः उपपात:-सेवा वचनम्-अभियोगपूर्वक आदेशः निर्देशा-प्रश्निते कायें नियतार्थमुत्तरं तत एषां बन्छ&स्ततस्तत्र ॥ ईशानेन्द्रवक्तव्यताप्रस्तावात्तद्वक्तव्यतासंबद्धमेवोद्देशकसमाप्तिं यावत् सूत्रवृन्दमाह| सकस्स णं भंते ! देविंदुस्स देवरन्नो विमाणेहिंतो ईसाणस देविंदस्स देवरन्नो विमाणा ईसिं उच्चयरा चेव ईसिं उन्नयतरा चेव ईसाणस्स वा देविंदस्स देवरन्नो विमाणेहिंतो सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो विमाणा लणीययरा चेव ईसि निन्नयरा चेव , हता! गोयमा सकस्स तं चेव सव्वं नेयब्वं । से केणटेणं ?, गोयमा ! से जहानामए-करयले सिया देसे उचे देसे उन्नए देसे पीए देसे निन्ने, से तेणटेणं गोयमा सकस्स देविंदस्स देवरन्नो जाव ईसिं निण्णतरा चेव । (स. १३८)। पभू णं भंते ! सक्के देविंदे देवराया ईसाणस्स देविंदस्स देवरन्नो अंतियं पाउन्भवित्तए १, हंता पभू, से णं भंते ! किं आढायमाणे पभू अणादायमाणे पभू?, गोयमा! आढायमाणे पभू नो अणादायमाणे पभू, पभू णं भंते ! ईसाणे देविंदे देवराया सकस्स देविंदस्स देवरनो अंतियं पाउन्भवित्तए ?, हंता पभू, से भंते ! किं आढापमाणे पभू अणादायमाणे पभू?, गोयमा आढायमाणेवि पभू अणाढायमाणेवि पभू। पभू ण भंते !सके देविंदे देवराया ईसाणं देविंदं देवरायं सपक्खि सपडिदिसिं समभिलोएत्तए जहा पादुम्भवणा तहा दोवि आलावगा नेयब्वा । पभू णं भंते ! सके देविंदे देवराया ईसाणेणं देविदेणं देवरन्ना सद्धिं आलावं वा संलावं वा करेत्तए?, हंता! पभू जहा पादुन्भवणा । अस्थि णं भंते ! तेर्सि सकीसाणाणं देविंदाणं देवराईणं किचाई करणिज्जाई समुप्पजंति !, हता! अस्थि, से कहमिदाणिं पकरेंति !, गोयमा ! दीप अनुक्रम [१६१-१६३] ~348~
SR No.035008
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 08 Bhagavati Mool evam Vrutti Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages592
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size129 MB
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