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________________ आगम (०५) [भाग- ८] “भगवती"-अंगसूत्र-५/१(मूलं+वृत्ति:) शतक [२], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [१], मूलं [९१] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५, अंगसूत्र- [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [९१] दीप अनुक्रम [११२] व्याख्या- महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणप्पयाहिणं करेद जाव पजुवासइ । खंदयाति समणे भगवं महावीरे खंदयं २ शतक प्रज्ञप्तिः कच्चाय एवं वयासी-से नूणं तुम खंदया ! सावस्थीए नयरीए पिंगलएणं णियंठेणं वेसालियसावएण * उद्देशः१ अभयदेवी इणमक्खेवं पच्छिए मागहा। किं सते लोए अणते लोए एवं तं जेणेव मम अंतिए तेणेव हव्वमागए, से स्कन्दकचया वृत्तिः१ नणं खंदया। अयमढे समडे?, हंता अस्थि, जेविय ते खंदया ! अयमेयारूवे अन्भत्थिए चिंतिए पथिए। ॥११७॥ मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-किं सते लोए अणंते लोए? तस्सविय णं अयमढे-एवं खलु मए खंदया चिबिहे लोए पन्नत्ते, तंजहा-दब्बओ खेत्तओ कालओ भावओ। दवओ एगे लोए सअंते ?, खेत्तओ णं लोए असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ आयामविखंभेणं असंखेजाओ जोयणको-15|| डाकोडीओ परिक्खेवेणं प० अस्थि पुण सअंते २, कालओ णं लोए ण कयावि न आसी न कयावि न भवति | न कयाविन भविस्सति भविंसु य भवति य भविस्सइ य धुचे णितिए सासते अक्खए अव्वए अवडिए राणिये, णधि पुण से अंते ३, भावओ णं लोए अणंता वण्णपज्जवा गंध रस० फासपजवा अर्णता संठाणपज्जवा || अर्णता गरुयलहुयपजवा अर्णता अगरुयलहयपज्जवा, नस्थि पुण से अंते ४, सेत्तं खंदगा! दवओ लोए ससाअंते खेत्तओ लोए सअंते कालतो लोए अणंते भाषओ लोए अणते । जेविय ते खंदया! जाव सते || जीवे अणंते जीवे, तस्सवि य णं अयमढे-एवं खलु जाब दवओ णं एगे जीवे सते, खेत्तओ णं जीवे ॥ असंखेजपएसिए असंखेजपदेसोगादे अस्थि पुण से अंते, कालओ णं जीवे न कयाविन आसि जाव निचे-दा स्कंदक (खंधक) चरित्र ~247~
SR No.035008
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 08 Bhagavati Mool evam Vrutti Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages592
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size129 MB
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