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________________ आगम (०४) [भाग-७] “समवाय" - अंगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) समवाय [२२], ------------- --------------------------- मूलं [२२] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.आगमसूत्र- [०४] अंगसूत्र- [०४] “समवाय" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: प्रत सूत्राक [२२] वष्णपरिणामे नीलवण्णपरिणामे लोहियवण्णपरिणामे हालिद्दवण्णपरिणामे सुकिलवण्णपरिणामे सुब्भिगंधपरिणामे दुन्मिगंधपरिणामे तित्तरसपरिणामे कडुयरसपरिणामे कसायरसपरिणामे अंबिलरसपरिणामे महुररसपरिणामे कक्खडफासपरिणामे मउयफासपरिणामे गुरुफासपरिणामे लहुफासपरिणामे सीतफासपरिणामे उसिणफासपरिणामे णिद्धफासपरिणामे लुक्खफासपरिणामे अगुरुलहुफासपरिणामे गुरुलहुफासपरिणामे, इमीसे णं स्यणप्पभाए पुडवीए अत्येगइयाणं नेरइयाणं बावीस पलिओवमाई ठिई १०, छडीए पुढवीए उक्कोसेणं यावीस सागरोवमाई ठिई प०, अहेसत्तमाए पुडवीए अत्यंगइयाण नेरइयाणं जहाणेणं बावीसं सागरोवमाई ठिई प०, असुरकुमाराणं देवाणं अत्यंगइयाणं चावीसं पलिओवमाई ठिई प०, सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं बावीसं पलिओवमाई ठिई प०, अकुते कप्पे देवाणं बावीस सागरोवमाई ठिई ५०, हेहिमहेडिमगेवेअगाणं देवाणं जहण्णेणं बावीस सागरोवमाई ठिई प०, जे देवा महियं विसहियं विमलं पभासं वणमालं अचुतवडिंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा तेसि णं देवाण उकोसेणं चावीस सागरोवमाई ठिई प०, ते णं देवा गं बावीसाए अद्धमासएणं आणमंति वा पाणमंति वा उस्ससंति वा नीससंति वा, तेसि णं देवाणं बावीस वाससहस्सेहिं आहारढे समुप्पअइ, संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे पावीसं भवग्गहणेहि सिझिसंति धुझिस्संति मुश्चिस्संति परिनिब्वाइस्संति सम्बदुक्खाणमंतं करिस्संति ॥ सूत्र २२॥ द्वाविंशतितमं तु स्थानं प्रसिद्धार्थमेव, नवरं सूत्राणि पद स्थितेराक, तत्र मार्गाच्यवननिर्जराथै परिषद्यन्ते इति परीषहाः, 'दिगिंछ'त्ति बुभुक्षा सैव परीषहो दिगिन्छापरीषह इति, सहनं चास्य मर्यादानुलानेन, एवमन्यत्रापि १, तथा पिपासा-तृट् २ शीतोष्णे प्रतीते ३-४ तथा दंशाश्च मशकाश्च दंशमशका उभयेऽप्येते चतुरिन्द्रिया महत्त्वा प्रत अनुक्रम [१२] द्वाविंशति परिषहा: भेदा: एवं व्याख्या; ~92~
SR No.035007
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 07 Samvay Mool evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages338
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size72 MB
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