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________________ आगम (०४) [भाग-७] “समवाय" - अंगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) समवाय [१२]. ------------------------------------ मुलं [१२] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.आगमसूत्र- [०४] अंगसूत्र- [०४] “समवाय" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [१२] + + चतुर्विंशतिघटिकाप्रमाणा, एवं 'दिवसोवि' त्ति सर्वजघन्यो द्वादशमौहूर्तिक एवेत्यर्थः, स च दक्षिणायनपर्यन्तदिवस इति । माहेन्द्रमाहेन्द्रध्वजकम्बुकम्बुग्रीवादीनि त्रयोदश विमाननामानीति ॥ १२॥ तरेस किरियाठाणा प० त०-अट्ठादंडे अणहादंडे हिंसादंडे अकम्हादंडे दिविविपरिआसिआदंडे मुसावायवत्तिए अदिन्नादाणवत्तिए अज्झथिए मानवत्तिए मित्तदोसवत्तिए मायावत्तिए लोभवत्तिए इरिआवहिए नाम तेरसमे, सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु तेरस विमाणपत्थडा प०, सोहम्मबडिंसगे णं विमाणे ण अद्धतेरसजोयणसयसहस्साई आयामविक्खंभेणं प०, एवं ईसाणवडिसगेवि, जलयरपंचिंदिअतिरिक्खजोणिआणं अद्धतेरस जाइकुलकोडीजोणीपमुहसवसहस्साई प०, पाणाउस्स णं पुवस्स तेरस वत्यू प०, गम्भवक्कंतिअपंचेंदिअतिरिक्खजोणिआणं तेरसविहे पओगे प० तं०-सच्चमणपओगे मोसमणपओगे सचामोसमणपओगे असचामोसमणपओगे सञ्चवइपओगे मोसवइपओगे सच्चामोसवइपओगे असच्चामोसवईपओगे ओरालिअसरीरकायपओगे ओरालिअमीससरीरकायपओगे वेउब्विअसरीरकायपओगे वेउन्विअमीससरीरकायपओगे कम्मसरीरकायपओगे, सूरमंडलं जोयणेणं तेरसेहिं एगसहिभागहिं जोयणस्स ऊणं प०, इमीसे गं स्यणप्पभाए पुढवीए अत्यंगइयाणं नेरइयाणं तेरस पलिओवमाई ठिई प०, पंचमीए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं तेरस सागरोवमाई ठिई प०, असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं तेरस पलिओवमाई ठिई प०, सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइआणं देवाणं तेरस पलिओवमाई ठिई प०, लंतए कप्पे [सु] अत्थेगइआणं देवाणं तेरस सागरोवमाई ठिई प०, जे देवा वजं सुवर्ज वजावत्तं वजप्पभं वजकतं वजवणं वालेसं वजरूवं वासिंग वजसिद्ध वअकडं वअत्तरवडिंसगं वरं वइरावत्तं प्रत अनुक्रम [२०-२५] + 5CRORER5R-5 ५स. ~60~
SR No.035007
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 07 Samvay Mool evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages338
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size72 MB
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