________________
आगम
(०४)
[भाग-७] “समवाय" - अंगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:)
समवाय [प्रकिर्णका:], ------------------------------------ मूलं [१४७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.आगमसूत्र- [०४] अंगसूत्र- [०४] “समवाय" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [१४७]
प्रत अनुक्रम [२२८-२३२]
आई बावीस सुत्ताई चउक्कणइयाई ससमयसुत्तपरिवाडीए, एवामेव सपुत्वावरेणं अट्ठासीति सुत्ताई भवतीतिमक्खयाई, सेत्तं सुत्ताई। से कि तं पुबगयं १, पुष्वगयं चउदसविहं पन्नत्तं, तंजहा-उप्पायपुव्वं अग्गेणीयं वीरियं अस्थिणस्थिपवायं नाणपवार्य सञ्चप्पवायं आयप्पवाय कम्मपवायं पञ्चक्खाणप्पवायं विजाणुप्पवायं अवझ० पाणाऊ० किरियाबिसालं लोगबिंदुसारं १४, उप्पायपुवस्स णं दस वत्यू प० चत्तारि चूलियावस्थू प०, अग्गेणियस्स णं पुवस्स चोइस वत्थू वारस चूलियावत्थू, वीरियपवायस्स णं पुब्बस्स अट्ट वत्थू अट्ठ चूलियावत्थू प०, अत्थिणत्थिप्पवायस्स णं पुवस्स अट्ठारस वत्थू दस चूलियावत्थू प०, नाणप्पवायस्स णं पुवस्स बारस वत्थू प०, सचप्पवायस्स णं पुवस्स दो वत्थू प०, आयप्पवायस्स णं पुवस्स सोलस वत्थू प०, कम्मप्पवायपुवस्स तीसं वत्थू प०, पचक्खाणस्स णं पुवस्स वीसं वत्थू प०, विजाणुप्पवायरस णं पुण्वस्स पनरस वत्थू प०, अवंझस्स ण पुचस्स बारस बत्थू प०, पाणाउस्स णं पुब्बस्स तेरस वत्थू प०. किरियाविसालस्स णं पुब्बस्स तीस वत्थू प०,लोगबिंदुसारस्स णं पुच्चस्स पणवीसं वत्यू प०, दस चोद्दस अट्ठद्वारसे व वारस दुवे य वत्थूणि । सोलस तीसा वीसा पन्नरस अणुप्पवायमि ॥१॥ बारस एक्कारसमे बारसमे तेरसेव वत्थूणि । तीसा पुण तेरसमे चउदसमे पन्नवीसाओ ॥२॥ चत्तारि दुवालस अट्ठ चेव दस चेव चूलवत्थूणि । आतिलाण चउण्हं सेसाणं चूलिया णधि ॥३॥ सेत्तं पुवगर्य, से किं तं अणुओगे?, अणुओगे दुविहे पन्नते, तंजहा-मूलपढमाणुओगे य गंडियाणुओगे य, से किं तं मूलपढमाणुओगे?, एत्य णं अरहतार्ण भगवंताणं पुष्वभवा देवलोगगमपाणि आउं चवणाणि जम्मणाणि अ अभिसेया रायवरसिरीओ सीयाओ पञ्चजाओ तवा य भत्ता केवलणाणुप्पाया अतित्थपवत्तणाणि अ संघयणं संठाणं उचत्तं आउं वनविभागो सीसा गणा गणहरा य अआ पवत्तणीओ संघस्स चउनिहस्स जे वाषि
द्रष्टिवाद अंगसूत्रस्य शाश्त्रीयपरिचय:,
~268~