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________________ आगम (०४) [भाग-७] “समवाय" - अंगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) समवाय [प्रकिर्णका:], ---------------- ----------- मूलं [१४६] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.आगमसूत्र- [०४] अंगसूत्र- [०४] “समवाय" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [१४७] श्रीसमवा- यांगे श्रीअभय० वृत्तिः ॥१२॥ प्रत अनुक्रम [२२७] ख्यायन्त इति, शेषं कण्ठ्यं, नयर संख्यातानि पदशतसहस्राणि पदाग्रेणेति, तत्र किल एका पदकोटी चतुरशीतिश्च ||१४७८लक्षाणि द्वात्रिंशच सहस्राणीति ॥११॥ टिवाद: से किं तं दिहिवाए, १ दिद्विवाए णं सवभावपरूवणवा आधविनंति से समासओ पंचविहे प० त०-परिकम्म सुत्ताई पुवगर्य अणुओगो चूलिया, से किं तं परिकम्मे ?-परिकम्मे सत्तविहे ५० तं-सिद्धसेणियापरिकम्मे मणुस्ससेणियापरिकम्मे पुट्ठसेणिवापरिकम्मे ओगाहणसेणियापरिकम्मे उपसंपजसेणियापरिकम्मे विप्पजहसेणियापरिकम्मे चुआचुअसेणियापरिकम्मे, से किं तं सिद्धसेणियापरिकम्मे?, सिद्धसेणिआपरिकम्मे चोदसविहे प० त०-माउयापयाणि एगद्वियपयाणि पादोद्वपयाणि आगासपयाणि केउभ्यं रासिबद्धं एगगुणं दुगुणं तिगुणं केउमूयं पडिग्गदो संसारपडिग्गहो नंदावतं सिद्धबद्धं, सेत्तं सिद्धसेणियापरिकम्मे, से किं तं मणुस्ससेणियापरिकम्मे १, मणुस्ससेणियापरिकम्मे चोदसविहे पण्णते, तं जहा ताई चेव माउआपयाणि जाव नंदावर्स मणुस्सपद्धं, सेत्तं मणुस्ससेणियापरिकम्मे, अवसेसा परिकम्माई पुट्ठाइयाई एक्कारसविहाई पनत्ताई, इचेयाई सत्त परिकम्माई ससमइयाई सत्त आजीवियाई छ चउक्कणइयाई सत्त तेरासियाई, एवामेव सपुवावरेणं सत्त परिकम्माई तेसीति भवंतीतिमक्खायाई, सेत्तं परिकम्माई, से कि तं सुत्ताई, सुत्ताई अट्ठासीति भवतीतिमक्खायाई, तंजहा-उजुगं परिणयापरिणयं बहुभंगियं विषवइयं [विन(ज)पचरिय] अगंतरं परंपरं समाण संजूहं [मासाणं] सं भिन्नं अहाच्चयं [अहवायं नन्यां] सोवत्थि(वत्त) यं णंदावतं वहुलं पुट्ठापुढे वियावत्तं एवंभूयं दुआवत् ॥१२८॥ वत्तमाणप्पयं समभिरूदं सबओभदं पणाम[पस्सासं नन्यां] दुपडिग्गह इच्चेयाई बावीसं सुत्ताई छिण्णछेअणदाई ससमयसुत्तपरिवाडीए, इचेआई बावीस सुत्ताई अछिन्नछेवनइयाई आजीवियसुत्तपरिवाडीए, इचेआई बावीसं सुत्ताई तिकणइयाई तेरासियसुत्तपरिवाडिए, इचे विपाकश्रुत अंगसूत्रस्य शाश्त्रीयपरिचयः, द्रष्टिवाद अंगसूत्रस्य शाश्त्रीयपरिचय:, ~267~
SR No.035007
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 07 Samvay Mool evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages338
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size72 MB
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