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________________ आगम (०३) [भाग-6] "स्थान" - अंगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:) स्थान [9], उद्देशक [३], मूलं [४७०] श्रीस्थाना सूत्रवृत्तिः प्रत ॥३५१॥ सूत्रांक [४७०] दीओ समप्यति सं०-सतडू विभासा वितत्था एरावती चंदभागा २ जंवूमदरस्स उत्तरेणं रत्तामहानई पंच महान ५ स्थाना ईओ समप्पेंति, सं0-किण्हा महाकिण्हा नीला महानीला महातीरा ३, जंबूमंदरस्स उत्तरेणं रत्तावतीमहानई पंच उद्देश ३ महानईमो समप्पेंति, सं०-इंदा इंदसेणा सुसेणा वारिसेणा महाभोया ४ (सू०४७०) पंच तित्थगरा कुमारवासमझे विमानोपसित्ता (उझावसित्ता) मुंडा जाव पन्वतिता, तं०-यासुपुजे मल्ली अरिटुनेमी पासे धीरे (सू०४७१) चमरचंचाए चताबन्धरायहाणीए पंच सभा पं० सं०-सभा सुधम्मा उववातसभा अभिसेयसभा अलंकारितसभा ववसातसभा, एगमेगे णं पुद्गलान दीसंगमः इंदहाणे गं पंच सभाओ पं०.०-सभा सुहम्मा जाव ववसातसभा (सू०४७२) पंच णक्खत्ता पंचतारा पं० २० कुमारजि--वणिवा रोहिणी पुणबसू इत्यो विसाहा (सू०४५३) जीवाणं पंचट्ठाणणिबित्तिते पोग्गले पावकम्मत्ताते चि नाः सभा: जिंस वा चिणंति वा चिणिस्संति चा, तं०-एगिदितनिव्वत्तिते जाव पंचिंदितनिव्वत्तिते, एवं चिण उबविण बंध पंचतारकउदीर घेद तह णिज्जरा चेव'। पंचपतेसिता खंधा अर्णता पण्णत्ता पंचपतेसोगाढा पोग्गला अर्णता पण्णता जाव पंचगु লম্বলি णलुक्खा पोग्गला अणंता पण्णत्ता (सू०४७४) पंचमट्ठाणस्स सईओ उद्देसो । पंचमजायणं समर्स ॥ पुद्गलाः सू०४६९सर्वाण्येतानि सुगमानि, नवरं 'बंधिंसुत्ति शरीरादितयेति, 'दक्षिणेने ति भरते 'समप्पेंति'त्ति समाप्नुवन्ति, 'उत्त ४७४ रेणे'ति ऐरवत इति । पूर्वतरसूत्रे भरतवक्तव्यतोक्तेति तत्प्रस्तावात्तदुत्पन्नतीर्थकरसूत्र सुगम, नवरं कुमाराणामराजभा-IM३५१॥ वेन वासः कुमारवासः तं 'अज्झावसित्त'त्ति अध्युष्येति । तथा भरतादिक्षेत्रप्रस्तावात् क्षेत्रभूतचमरचञ्चादिवक्तव्य दीप GANGA अनुक्रम [५१३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित....आगमसूत्र - [३], अंग सूत्र - [०३] "स्थान" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: ~135~
SR No.035006
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 06 Sthan Mool evam Vrutti Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages494
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size106 MB
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