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आगम (०३)
[भाग-5] "स्थान" - अंगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:)
स्थान [४], उद्देशक [१], मूलं [२७२] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित....आगमसूत्र - [०३], अंग सूत्र - [३] "स्थान" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
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सूत्रांक [२७२]
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दीप अनुक्रम [२८६]
च्छन्नमगीतार्थासमक्ष, अत्र चाये भङ्गकत्रये पुष्टालम्बनो बकुशादिः निरालम्बनो वा पार्श्वस्थादिष्टव्यः, चतुर्थे तु निम्रन्थः स्नातको वेति, अन्तराधिकारादेव देवपुरुषाणां स्वीकृतमन्तरं प्रतिपादयनाह
चमरस्स णं असुरिंदरस असुरकुमाररनो सोमस्स महारनो चत्तारि अगमहिसीओ पं० २०--कणगा कणगलता चित्तगुत्ता वसुंधरा, एवं जमस्स वरुणस्स वेसमणस्स, बलिस्स णं वतिरोयणिदस्स वतिरोयणरनो सोमस्स महारो चत्वारि अग्गमहिसीओ पं० २०--मित्तगा मुभदा विजुत्ता असणी, एवं जमस्स वेसमणस्स वरुणस्स, धरणस्स णं नागकुमारिंदरस णागकुमाररमो कालवालस्स महारो चत्तारि अगमहिसीओ पं० २०-असोगा विमला मुप्पभा मुदंसणा, एवं जान संखवालस्स, भूताणंदस्स णं णागकुमारिंदस्स णागकुमाररनो कालवालस्स महारो चत्तारि अग० ५००मुणंदा सुभदा सुजाता सुमणा, एवं जाब सेलवालस्स जहा धरणस्स, एवं सब्वेसि दाहिणिलोगपालाणं जाव घोसस्स जहा भूताणंदरस एवं जाव महापोसस्स लोगपालाणं, कालस्स णं पिसाईदस्स पिसायरनो चत्तारि अगमहिसीओ पं. तं०-कमला कमलप्पभा उप्पला मुदसणा, एवं महाकालस्सवि, सुरुवस्स णं भूतिंदस्स भूतरन्नो चत्तारि अग्रामहिसीओ पं० सं०-रूववती बहुरूवा सुरूवा सुभगा, एवं पडिरूवस्सवि, पुष्णभदस्स णं जक्सिंदस्स जक्खरनो चत्तारि अगमहिसीओ पं० सं०-पुत्ता बहुपुत्तिता उत्तमा तारगा, एवं माणिभहस्सवि, भीमस्स णं रक्ससिदस्स रक्खसरनो पत्तारि अगामहिसीभी पं००-पटमा वसुमती कणगा रक्षणप्पमा, एवं महाभीमस्सवि, किंनरस्स णं किनरिंदस्स चत्तारि अग्ग० ५००-वडेंसा केतुमती रतिसेणा रतिप्पभा, एवं किंपुरिसस्सवि, सप्पुरिसस्स णं किंपुरि सिंदस्स०
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चमर आदि असुरकमारस्स अग्रमहिष्य:
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