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आगम (०३)
[भाग-5] "स्थान" - अंगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:)
स्थान [२], उद्देशक [३], मूलं [९४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित....आगमसूत्र - [०३), अंग सूत्र - [०३] "स्थान" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [९४]
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रिंदा पं० सं०-लंबे चेव पभंजणे चेव, दो थणियकुमारिंदा पण्णत्ता, तं०-पोसे चेव महाघोसे चेव, दो पिसाइंदा पन्नत्ता-तं०-काले चेव महाकाले चेव, दो भूइंदा पं० १०-सुरूवे चेव पडिरूवे चेव, दो अक्खिदा पन्नत्ता, तं०पुनम चेव माणिभरे चेव, दो रक्खसिंदा पन्नता, तं०-भीमे चेव महाभीमे चेव, दो किन्नरिंदा पन्नत्ता, सं०-किन्नरे चेव किंपुरिसे चेव, दो किंपुरिसिंदा पं० सं०-सप्पुरिसे चेव महापुरिसे चेव, दो महोरगिंदा पं० २० प्रतिकार व महाकाए चेव, दो गंधबिदा पं०,०गीतरती चेव गीयजसे चेव, दो अणपनिंदा पं०,०-संनिहिए चेष सामणे चेव, दो पणपनिंदा पं०, २०-बाए चेव विहाए चेव, दो इसिवाईदा पं०, ०-इसिव इसिवालए चेव, दो भूतवाइंदा पन्नत्ता, सं०-इस्सरे व महिस्सरे चेव, दो कंदिदा पं० सं०-सुवच्छे चेव विसाले घेव, दो महाकदिंदा पन्नत्ता, तं०-हस्से चेव हस्सरती चेव, दो कुभंडिंदा पं० २०-सेए चेव महासेए चेव, दो पतइंदा पं० सं०-पतए चेव पत्तयवई चेव, जोइसियाणं देवाणं दो इंदा पन्नत्ता, तं०-चंदे चेव सूरे चेव, सोहम्मीसाणेसु णं कप्पेसु दो इंदा पं०, तं०-सके व ईसाणे घेव, एवं सर्णकुमारमाहिदेसु कप्पेसु दो इंदा पं०, तं०-सर्णकुमारे चेव माहिदे चेष, घंभलो. गलंतएसु णं कषेसु दो इंदा पं०, तं०-भे चैव लंतए चेक, महासुकसहस्सारेसु णं कप्पेसु दो इंदा पनत्ता, तं०महामुके घेष सहस्सारे चेब, आणयपाणवारणचुतेसु णं कप्पे दो इंदा पं० सं०-पाणते चेव अभृते चेष, महासुकासहस्सारेसु णं कप्पेसु बिमाणा दुवण्णा पं०, ०-हालिदा व सुकिला चेव, गेविनगाणं देवा णं दो रयणीओ
मुचत्तेणं पन्नत्ता (सू० ९४ ) द्वितीयस्थाने तृतीयोद्देशकः समाप्तः । २-३ ।
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दीप अनुक्रम
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स्था०१५
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