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आगम
(०३)
प्रत
सूत्रांक
[८]
दीप
अनुक्रम [८९]
[भाग-5] "स्थान" अंगसूत्र- ३ ( मूलं + वृत्तिः)
स्थान [२], उद्देशक [3]. मूलं [८९] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ... आगमसूत्र - [०३], अंग सूत्र - [०३ ]
श्रीस्थाना
ङ्गसूत्रवृत्तिः
॥ ७७ ॥
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न्धिनी ऋद्धिर्दुष्पमसुषमैव, शेषं तथैव, अधीयते च "मैणुयाण पुण्यकोडी आउं पंचुस्सिया धणुसयाई । दूसमसुस| माणुभावं अणुहोति णरा निययकालं ॥ १ ॥” इति । 'जंबूद्दीवे' इत्यादि, 'छव्विपिति सुषममुपमादिकं उत्सर्पिण्यविसर्पिणीरूपमिति । अनन्तरं जम्बूद्वीपे काललक्षणद्रव्यपर्यायविशेषा उक्ताः, अधुना तु जम्बूद्वीप एव कालपदार्थव्यञ्जकानां ज्योतिषां द्विस्थानकानुपातेन प्ररूपणामाह-
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जंबुद्दीवे दीवे दो चंदा पभासिंधु वा पभासंति वा पभासिस्संति वा, दो सूरिआ तर्विसु वा तवंति वा तविस्संति वा, दो कत्तिया, दो रोहिणीओ, दो नगसिराओ, दो अदाओ एवं भाणियव्वं, “कत्तिये रोहिणि मंगसिर अँदा य पुणेवसू अ सोय । तत्तोऽवि अस्सलेसा मही य दो फैर्गुणीओ य ॥ १ ॥ यो चित्ती "साई, विसोहा तहय होति अराहा । जेठ्ठी' "मूलो पुव्वा य आसाढा उत्तेरी चेव ॥ २ ॥ अभिसंधी सयभिसंया दो य होंति भयो । रेवति अस्सिणि भैरणी नेतव्या आणुपुब्बीए || ३ || एवं गाहानुसारेणं गेयब्वं जाव दो भरणीओ दो अग्गी दो प यावती दो सोमा दो रुदा दो अदिती दो बहस्सती दो सप्पी दो पीती दो भगा दो अज्जमा दो सविता दो तहा दो बाऊ दो इंदग्गी दो मित्ता दो इंदा दो निरती दो आऊ दो विस्सा दो बम्हा दो विष्णु दो वसू दो वरुणा दो अवा दो विविद्धी दो पुस्ता दो अस्सा दो यमा । दो इंगालगा दो चियालगा दो लोहितक्खा दो सणिचरा दो आहुनिया दो पाहुणिया दो कणा दो कणगा दो कणकणगा दो कणनविताणगा दो कणगसंताणगा दो सोमा दो सहिया दो आसासणा दो १ मनुजानां पूर्वको पंचधनुः वातोच्छ्रितानि दुण्यमुपमानुभावमनुभवति नरा नियतकाले ॥ १ ॥
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"स्थान" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः
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२ स्थान. काध्ययने
उद्देशः ३ चन्द्रादित्य
नक्षत्रादिस्वरूपं
॥ ७७ ॥
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