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________________ आगम (०२) [भाग-4] “सूत्रकृत्” - अंगसूत्र-२ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्तिः ) श्रुतस्कंध [२.], अध्ययन [१], उद्देशक -1, मूलं [५], नियुक्ति: [१५७] सूत्रकृताङ्गे २ श्रुतस्कन्धे शीलाकीयावृत्तिः ॥२७॥ १ पुण्डरीकाध्य दृष्टान्तः प्रत सुत्रांक वरपोंडरीयं उन्निक्खिस्सामो णो य खलु एयं पउमवरपोंडरीयं एवं उन्निक्खेयव्वं जहा णं एते पुरिसा मन्ने, अहमंसि पुरिसे खेयन्ने जाव मग्गरस गतिपरफमण्णू, अहमेयं पउमवरपोंडरीयं उग्निक्खिस्सामित्तिकट्ट इति वुचा से पुरिसे तं पुक्वरिणिं जावं जावं च णं अभिकमे तावं तावं च णं महंते उदए महंते सेए जाव णिसन्ने, चउत्थे पुरिसजाए ॥ (सूत्रं ५)। अह भिक्खू लूहे तीरट्ठी खेयन्ने जाव गतिपरकमण्णू अन्नतराओ दिसाओ वा अणुविसाओ वा आगम्म तं पुक्खरिणं तीसे पुक्खरिणीए तीरे ठिचा पासति तं महं एर्ग पउमवरपोंडरीयं जाव पडिरूवं, ते तत्थ चत्तारि पुरिसजाए पासति पहीणे तीरं अपत्ते जाव पउमवरपोंडरीयं णो हवाए णो पाराए अंतरा पुक्खरिणीए सेयंसि णिसने, तएणं से भिक्खू एवं वपासी-अहोणं इमे पुरिसा अखेयना जाव णो मग्गस्स गतिपरकमण्णू, जं एते पुरिसा एवं मन्ने अम्हे एवं पउमवरपोंडरीयं उन्निक्खिस्सामो, णो य खलु एवं पउमवरपोंडरीयं एवं उनिक्खेतव्यं जहा ण एते पुरिसा मन्ने, अहमंसि भिक्खू लूहे तीरही खेयन्ने जाव मग्गस्स गतिपरक्कमपणू, अहमेयं पउमवरपॉडरीयं उपिणक्खिस्सामित्तिकट्ठ इति बुचा से भिक्खू णो अभिक्कमे तं पुक्खरिणि तीसे पुक्खरिणीए तीरे ठिचा सई कुज्जाउप्पयाहि खलु भो पउमवरपोंडरीया ! उप्पयाहि, अह से उप्पतिते पजमवरपोंडरीए । (सूत्रं ६॥ अस्य चानन्तरसूत्रेण सह सम्बन्धो वाच्यः, स चायं-सि एवमेव जाणह जमई भयंतारो'ति तदेतदेव जानीत भयख त्रातारः, तद्यथा-श्रुतं मयाऽऽयुष्मता भगवतैवमाख्यातम् , आदिसूत्रेण च सह सम्बन्धोऽयं, तद्यथा-यद्भगवताऽऽख्यातं दीप अनुक्रम [६३७] ॥२७१॥ पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित......आगमसूत्र-[०२], अंग सूत्र-०२] "सुत्रकृत्" मूलं एवं शिलांकाचार्य-कृत् वृत्ति: पूज्य ~73
SR No.035004
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 04 Sootrakrut Mool evam Vrutti Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages392
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size84 MB
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