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________________ आगम (०२) [भाग-4] “सूत्रकृत्” - अंगसूत्र-२ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्तिः ) श्रुतस्कंध [२.], अध्ययन [२], उद्देशक [-], मूलं [३२], नियुक्ति: [१६८] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित......आगमसूत्र-०२], अंग सूत्र-[०२] "सुत्रकृत्" मूलं एवं शिलांकाचार्य-कृत् वृत्ति: प्रत सूत्रांक [३२] दीप अनुक्रम [६६४] ति अन्नपि कप्पतं समणुजाणइ ॥ से एगइओ णो वितिगिंछह तं०-गाहावतीण बा गाहावइपुत्ताण वा उसालाओ वा जाव गहभसालाओ वा कंटकवोंदियाहिं पडिपेहित्ता सयमेव अगणिकाएक झामेइ जाँच समणुजाणइ ॥ से एगइओ णो वितिगिंछह, तं०-गाहावतीण वा गाहावापुत्ताण वा जाव मोतियं वा सयमेव अवहरह जाव समणुजाणइ ॥ से एगइओ णो वितिगिंछइ तं०-समणाण वा माहणाण या उत्सगं वा दंडगं वा जाव चम्मच्छेदणगं वा सयमेव अवहरद जाव समणुजाणइ इति से महया जाव उबक्खाइत्ता भव ॥ से एगइओ समणं वा माहणं वा दिस्सा णाणाबिहेहिं पावकम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवइ, अदुवा णं अच्छराए आफालित्ता भवइ, अदुवा णं फरुसं वदित्ता भवाइ, कालेणचि से अणुपचिट्ठस्स असणं वा पाणं वा जाव णो दवावेत्ता भवइ, जे इमे भबन्ति बोनमंता भारवंता अलसगा वसलगा किवणगा समणगा पवयंति ते इणमेव जीवितं धिजीवितं संपडिव्हेंति, नाइते परलोगस्स अट्ठाए किंचियि सिलीसंति, ते दुक्खंति ते सोयंति ते जूरंति ते तिप्पंति ते पिट्टति ते परितप्पति ते दुखणजूरणसोयणतिप्पणपिट्टणपरितिप्पणवहबंधणपरिकिलेसाओ अप्पडिविरया भवंति, ते महया आरंभेणं ते महया समारंभेणं ते महया आरंभसमारंभेणं विरूवरूवेहिं पावकम्मकिच्चेहिं उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजित्तारो भवंति, तंजहा-अन्नं अन्नकाले पाणं पाणकाले वत्थं वत्थकाले लेणं लेणकाले सयणं सयणकाले सपुवावरं च ण पहाए कयबलिकम्मे Reesesesesesesepecedeocoecen SARERatinintamational ~176~
SR No.035004
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 04 Sootrakrut Mool evam Vrutti Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages392
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size84 MB
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