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आगम (०२)
[भाग-4] “सूत्रकृत्” - अंगसूत्र-२ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्तिः )
श्रुतस्कंध [२.], अध्ययन [२], उद्देशक [-], मूलं [३१], नियुक्ति: [१६८] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित......आगमसूत्र-०२], अंग सूत्र-[०२] "सुत्रकृत्" मूलं एवं शिलांकाचार्य-कृत् वृत्ति:
प्रत सूत्रांक
दीप अनुक्रम [६६३]
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उहवइत्ता आहारं आहारेति, इति से महया पावहिं कम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवइ ॥ से एगइओ उवचरयभावं पडिसंधाय तमेव उवचरियं हंता छेत्ता भेत्ता लुपइत्ता विलुपइसा उहचइत्ता आहारं आहारेति, इति से महया पावेहिं कम्मेहिं अत्ताणं उबक्खाइत्ता भवइ ॥ से एगइओ पाडिपहियभावं पडिसंधाय तमेव पाडिपहे ठिच्चा हंता छेत्ता भेत्ता लुंपइत्ता विलुपइत्ता उद्दवइत्ता आहारं आहारेति, इति से महया पावेहिं कम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवइ ।। से एगइओ संधिछेदगभावं पडिसंधाय तमेव संधिं छेत्ता भेत्ता जाच इति से महया पावहिं कम्मेहिं अत्ताणं उवक्वाइत्ता भवइ ।। से एगइओ गंठिछेदगभावं पडिसंधाय तमेव गंठिं छेत्ता भेत्ता जाय इति से. महया पावहिं कम्मेहि अत्ताणं उवक्वाइसा भवद ॥ से एगइओ उरम्भियभावं पडिसंधाय उरभ वा अण्णतरं वा तसं पाणं हंसा जाब उबक्खाइसा भवइ । एसो अभिलायो सवत्थ ॥ से एगइओ सोयरियभावं पडिसंधाय महिसं वा अण्णतरं वा तसं पाणं जाव उवक्खाइत्ता भवह ॥ से एगइओ चागुरियभावं पडिसंधाय मियं वा अण्णतरं वा तसं पाणं हंता जाव उवक्खाइत्ता भवइ ॥ से एगइओ सउणियभावं पडिसंधाय सउर्णि वा अण्णतरं वा तसं पाणं हंता जाव उचक्खाइसा भवइ ॥ से एगइओ मच्छियभावं पडिसंधाय मच्छं वा अण्णतरं वा तसं पाणं हंता जाव उवक्खाइसा भवइ ॥ से एगइओ गोघायभावं पडिसंधाय तमेव गोणं वा अण्णयरं वा तसं पाणं हंता जाव उवक्खाइसा भवइ ॥ से एगइओ गोवालभावं पडिसंधाय तमेव गोवालं था परिजविय
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