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आगम (०२)
[भाग-4] “सूत्रकृत्” - अंगसूत्र-२ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्तिः ) श्रुतस्कंध [२.], अध्ययन [१], उद्देशक [-], मूलं [१३], नियुक्ति: [१५७]
सूत्रकृताङ्गे २श्रुतस्कन्धे शीलाकीयावृत्तिः ॥२९ ॥
१ पुण्डरीकाध्य भिक्षुःपश्चम: वेराग्यखरूपं
प्रत सूत्रांक [१३]
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याइयह अणिढे जाव णो सुहं, ताऽहं दुक्खामि वा सोयामि वा जाव परितप्पामि वा, इमाओ मे अन्नयरातो दुक्खातो रोयातकाओ परिमोएह अणिहाओ जाव णो सुहाओ, एवमेव णो लद्धपुर्व भवइ, तेर्सि वावि भयंताराणं मम णाययाणं अन्नयरे दुक्खे रोयातंके समुपज्जेजा अणिढे जाव णो सुहे, से हंता अहमेतेसिं भयंताराणं णाययाणं इमं अन्नयरं दुक्खं रोयातक परियाइयामि अणिटुं जाव णो सुहे, मा मे दुक्खंतु वा जाव मा मे परितप्पंतु वा, इमाओ णं अपणयराओ दुक्खातो रोयातंकाओ परिमोएमि अणिट्ठाओ जाव णो सुहाओ, एवमेव णो लद्धपुष भवइ, अन्नस्स दुक्खं अन्नो न परियाइयति अनेण कडं अन्नो नो पडिसंवेदेति पत्तेयं जायति पत्तेयं मरइ पत्तेयं चयइ पत्तेय उववजा पत्तेयं झंझा परोयं सन्ना पत्तेयं मन्ना एवं विजू बेदणा, इह (इ) खलु णातिसंजोगा णो ताणाए वा णो सरणाए घा, पुरिसे वा एगता पुषिं णातिसंजोए विप्पजहति, णातिसंजोगा वा एगता पुषिं पुरिसं विप्पजहंति, अन्ने खलु णातिसंजोगा अन्नो अहमंसि, से किमंग पुण वयं अन्नमन्नेहिं णातिसंजोगेहिं मुच्छामो ?, इति संखाए वयं णातिसंजोगं विप्पजहिस्सामो । से मेहावी जाणेजा बहिरंगमेयं, इणमेव उवणीयतराग, तंजहाहत्या में पाया मे बाहा मे ऊरू मे उदरं में सीसं मे सील मे आऊ में बलं मे वणो मे तया में छाया मे सोयं मे चक्खू मे घाणं मे जिन्भा मे फासा मे ममाइजइ, घयाउ पडिजूरह, तंजहा-आउओ बलाओ वण्णाओ तयाओ छायाओ सोयाओ जाव फासाओ सुसंधितो संधी विसंधीभवइ, बलियतरंगे गाए
दीप अनुक्रम [६४५]
18 ॥२९॥
पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित......आगमसूत्र-[०२], अंग सूत्र-[०२] "सुत्रकृत्" मूलं एवं शिलांकाचार्य-कृत् वृत्ति:
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