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________________ आगम (०२) [भाग-3] “सूत्रकृत्” - अंगसूत्र-२ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:) श्रुतस्कंध [१.], अध्ययन [७], उद्देशक [-], मूलं [६], नियुक्ति: [९०] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित......आगमसूत्र-०२], अंग सूत्र-०२] "सुत्रकृत्" मूलं एवं शिलांकाचार्य-कृत् वृत्ति: प्रत सूत्रांक ||६|| दीप अनुक्रम [३८६] 'निर्वापयन्' विध्यापर्यस्तदाश्रितानन्यांच प्राणिनो निपातयेत्रिपातयेद्वा तत्रोचालकनिर्वापकयोर्योऽग्निकायमुज्ज्वलयति स बहू-18 नामन्यकायानां समारम्भकः, तथा चागमः-"दो भंते ! पुरिसा अनमन्त्रेण सद्धि अगणिकार्य समारभति, तत्थ णं एगे पु-18 | रिसे अगणिकायं उजालेह एगेणं पुरिसे अगणिकार्य निबवेइ, वेसि भंते! पुरिसाणं कयरे पुरिसे महाकम्मतराए कयरे वा पुरिसे |8| अप्पकम्मतराए , गोयमा ! तत्थ गंजे से पुरिसे अगणिकार्य उज्जालेह से णं पुरिसे बहुतरागं पुढविकार्य समारभति, एवं Mआउकार्य वाउकार्य वणस्सइकार्य तसकार्य अप्पतरागं अगणिकार्य समारभइ, तत्थ पंजे से पुरिसे अगणिकायं निवावेइ से गं & पुरिसे अप्पतराग पुढविकार्य समारभइ जाच अप्पतरागं तसकायं समारभइ बहुतरागं अगणिकार्य समारभइ, से एतेणं अटेणं 3 गोयमा! एवं चुचई" || अपि चोक्तम्-"भूयाण एसमाषाओ, हावाहो ण संसओ" इत्यादि । यस्मादेवं तस्मात् 'मेधावी' सदसद्विवेकः सश्रुविकः समीक्ष्य धर्म पापाड्डीनः पण्डितो नाग्निकार्य समारभते, स एव च परमार्थतः पण्डितो योनिकायसमारम्भ-18 कताव पापाभिवर्तत इति ॥ ६॥ कथमनिकायसमारम्भेणापरप्राणिवधो भवतीत्याशवाह पुढवीवि जीवा आऊवि जीवा, पाणा य संपाइम संपयंति । संसेयया कटुसमस्सिया य, एते दहे अगणि समारभंते ॥ ७॥ हरियाणि भूताणि विलंवगाणि, आहार देहा य पुढो सियाई। १ भूतानामेष आधातो हम्यवाहो न संशयः ॥ ~3244
SR No.035003
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 03 Sootrakrut Mool evam Vrutti Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages498
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size100 MB
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