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आगम (०१)
[भाग-2] “आचार"मूलं "-अंगसूत्र-१ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:)
श्रुतस्कंध [२.], चुडा [१], अध्ययन [४], उद्देशक [२], मूलं [१३८], नियुक्ति: [३१४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित..आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-[१] “आचार" "मूलं एवं शिलांकाचार्य-कृत् वृत्ति:
श्रीआचा
प्रत
रावृत्तिः
श्रुतस्क०२ चूलिका १ भाषा०४ | उद्देशः २
सूत्रांक
(शी०) ॥३९॥
[१३८]
दीप
बज जाव नो भासिज्जा ॥ से मिक्खू वा भिक्खुणी वा मणुस्सं वा जाव जलयरं वा सेत्तं परिवूढकार्य पेहाए एवं वइजा
-परिवूढकाएत्ति वा उपचिवकाएसि वा विरसंघयणेत्ति वा चियमंससोणिएत्ति वा बहुपडिपुनइंदिइएत्ति था, एयपगारं भासं असावज जाव भासिना ।। से मिक्खू वा २ विरूवरूवाओ गाओ पेहाए नो एवं बहना, तंजहा-गाओ दुज्झा
ओत्ति वा दम्मेत्ति वा गोरहत्ति वा बाहिमत्ति वा रहजोग्गत्ति वा, एयप्पगारं भासं सावजं जाब नो भासिना । से मि० विरूवरूवाओ गाओ पहाए एवं बइजा, तंजहा-जुवंगवित्ति वा घेणुत्ति वा रसवइति वा हस्से इ वा महले इ वा महन्वएइ वा संवहणित्ति वा, एअप्पगारं भासं असावज जाव अमिकस भासिज्जा ।। से भिक्खू वा० सहेव गंतुमुज्जाणाई पव्वयाई वणाणि वा रुक्खा महले पेहाए नो एवं वइज्जा, तं०-पासायजोग्गाति वा तोरणजोगाइ चा गिहजोम्गाइ वा फलिहजो० अग्गलजो० नावाजो० उदग० दोणजो० पीढचंगबेरनंगळकुलियतलट्ठीनाभिगंडीआसणजो० सयणजाणउवस्सयजोगाई वा, एयप्पगारं नो भासिज्जा ।। से भिक्खू वा तहेव गंतु० एवं वइजा, तंजहा-आइमंता इ वा दीदवट्ठा इ वा महालया इ वा पयायसाला हवा विडिमसाला इ वा पासाइया इ वा जाव पडिरूवाति वा पथप्पगार भासं असाबज जाव भासिज्जा ।। से भि० बहुसंभूया वणफला पेहाए तहावि ते नो एवं वइजा, तंजहा-पका इ वा पायखज्जा इ वा बेलोइया इवा टाला इ वा वेहिया इ बा, एथप्पगारं भासं सावजं जाव नो भासिजा ।। से मिक्खू० बहुसंभूया वणफला अंबा पेहाए एवं बइजा, सं०-असंथडा इ वा बहुनिवट्टिमफला इ वा बहुसंभूया इ या भूवरुचित्ति बा, एयप्पगार भा० असा० ॥ से बहुसंभूया ओसही पेहाए तहावि ताओ न एवं वइजा, तंजहा-पणा वा नीलीया इ वा छवी
अनुक्रम [४७२]
RKARRERAKAKAKAL
।।३९०
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