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________________ आगम (०१) [भाग-2] “आचार"मूलं "-अंगसूत्र-१ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:) श्रुतस्कंध [२.], चुडा [१], अध्ययन [३], उद्देशक [३], मूलं [१२७], नियुक्ति: [३१२] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित..आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-[१] “आचार" "मूलं एवं शिलांकाचार्य-कृत् वृत्ति: प्रत सूत्रांक [१२७] दीप अनुक्रम [४६१] साधुविषयाऽऽशङ्का समुत्पद्येत, अथ साधूनां पूर्वोपदिष्टमेतत्प्रतिज्ञादिकं यत्तथा न कुर्यात् , आचार्योपाध्यायादिभिश्च गीतार्थैः सह विहरेदिति ॥ साम्प्रतमाचार्यादिना सह गच्छतः साधोर्विधिमाह से भिक्खू वा २ आयरिउवज्झा गामा० नो आयरियउवझायस्स हत्येण वा हत्वं जाव अणासायमाणे तो संजयामेव आयरिउ सद्धि जाप दूइन्जिना ॥ से भिक्खू वा आय० सद्धि दूराजमाणे अंतरा से पाडिवहिया पागच्छिजा, ते णं पा० एवं वइजा-आउसंतो! समणा! के तुन्भे ? कओ वा एह ? कहिं वा गच्छिहिह ?, जे तत्थ आयरिए वा उवज्झाए वा से भासिज्ज वा वियागरिज वा, आयरिउवझायस्स भासमाणस्स वा वियागरेमाणरस वा नो अंतरा भासं करिजा, तओ० सं० अहाराईणिए वा० दूजिजा ॥ से भिक्खू वा अहाराइणियं गामा० दू० नो राईणियस्स हत्येण हत्थं जाव अणासायमाणे वओ सं० अहाराणियं गामा० दू०॥ से भिक्खू वा २ अहाराइणिों गामाणुगाम दूइज्जमाणे अंतरा से पाडिवाहिया उवागरिछना, ते णं पाडिपहिया एवं वइजा-आउसंतो! समणा! के तुभे?, जे तत्थ सव्वराइणिए से भासिज वा वागरिज बा, राइणियस्स भासभाणरस वा वियागरेमाणस्स वा नो अंतरा भासं भासिज्जा, तओ संजयामेष अहाराइणियाए गामाणुगाम दूइजिज्जा ।। (सू० १२८) स भिक्षुराचार्यादिभिः सह गच्छस्तावन्मात्रायां भूमौ स्थितो गच्छेद् यथा हस्तादिसंस्पर्शो न भवतीति ॥ तथासि भिक्षुराचार्यादिभिः सार्द्ध गच्छन् प्रातिपथिकेन पृष्टः सन् आचार्यादीनतिक्रम्य नोत्तरं दद्यात्, नाण्याचार्यादी जल्पत्यन्तरभाषां कुर्यात्, गच्छंश्च संयत एव युगमात्रया दृष्ट्या यथारलाधिकं गच्छेदिति तात्सयार्थः ॥ एवमुत्तरसू ACADASCANCER ~480
SR No.035002
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 02 Aachaar Mool evam Vrutti Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages586
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size117 MB
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