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________________ आगम (०१) [भाग-1] “आचार” – अंगसूत्र-१ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:) श्रुतस्कंध [१.], अध्ययन [२], उद्देशक [३], मूलं [७९], नियुक्ति: [१९७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित.....आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-[१] “आचार" मूलं एवं शिलांकाचार्य-कृत् वृत्ति: लोक.वि.२ उद्देशकः३ པཎྞཾ ༔ ༔ ཀྵ ཟླ श्रीआचा- बन्धनं विष विषयाः। कोऽयं जनस्य मोहो?, ये रिपवस्तेषु सुहृदाशा ॥ १॥” इत्यादि ॥ ये पुनरुन्मजत्शुभकर्मापादि- राङ्गवृत्तिःताध्यवसायपुरस्कृतमोक्षास्ते किंभूता भवन्तीत्याह(शी०) इणमेव नावखंति, जे जणाधुवचारिणो ।जाईमरणं परिन्नाय, चरे संकमणे दढे (१) ॥१२१॥ नत्थि कालस्स णागमो, सव्वे पाणा पियाउया, सुहसाया दुक्खपडिकूला अप्पियवहा पियजीविणो जीविउकामा, सव्वेसिं जीवियं पियं, तं परिगिज्झ दुपयं चउप्पयं अभिजुजिया णं संसिंचिया णं तिविहेण जाऽवि से तत्थ मत्ता भवइ अप्पा वा बहुया वा, से तत्थ गतिए चिट्ठइ, भोअणाए, तओ से एगया विविहं परिसिटुं संभूयं महोवगरणं भवइ, तंपि से एगया दायाया वा विभयन्ति, अदत्तहारो वा से अवहरति, रायाणो वा से विलुपंति, नस्सइ वा से विणस्सइ वा से, अगारदाहेण वा से डज्झइ इय, से परस्सऽट्टाए कूराई कम्माई बाले पकुब्वमाणे तेण दुक्खेण संमूढे विपरियासमुवेइ, मुणिणा हु एवं पवेइयं, अणोहंतरा एए नो य ओहं तरित्तए, अतीरंगमा ||१२१॥ [253]
SR No.035001
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 01 Aachaar Mool evam Vrutti Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages314
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size64 MB
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